Saturday, September 28, 2013

भागवत स्कन्ध - 01 सार

* स्कन्ध - 01 का सार *
> स्कन्ध -1 में 809 श्लोक 19 अध्यायोंमें बटे हुए हैं ।
इस स्कन्धका सार कुछ इस प्रकार है :----
1- नारद बृंदाबनमें यमुनाके तट पर भक्ति से मिले। भक्ति वहाँ अपनें बेटे ज्ञान एवं वैराज्ञ के साथ थी । भक्ति कहती है - मैं द्रविण देश में पैदा हुयी ,कर्नाटकमें बढ़ी , महाराष्ट्रमें बच्चे हुए और गुजरात जब मैं पहुंची तब मैं और मेरे दोनों बच्चे उम्रसे अधिक बूढ़े हो गए और वहाँ मेरा अस्तित्व ही समाप्त सा हो गया । मैं अपनें बच्चोंके संग बृंदाबन आ गयी । यहाँ मैं तो जवान हो गयी लेकिन देखो मेरे दोनों बच्चे मुझसे भी अधिक बूढ़े हैं और दिन भर सोते रहते हैं । नारद कहते हैं - यह बृंदाबन भक्ति केलिए हैं जहां भक्ति सदैव जवान रहती है लेकिन यहाँ ज्ञान - वैराज्ञके लिए कोई जगह नहीं , ज्ञान - वैराज्ञ को चाहनें वाले यहाँ नहीं हैं । > नारदकी बातको समझिये ; वह भक्ति जिससे ज्ञान - वैराज्ञ नहीं आता , वह भक्ति अपरा भक्ति है जो परा भक्तिका द्वार बन सकती है लेकिन बृंदाबनमें परा भक्तिका उदय नहीं हो सकता । बात है तो बहुत कडुयी पर ध्यान योज्ञ है ।
2- विष्णुके विभिन्न अवतारोंका वर्णन किया गया है जैसे दूसरा अवातार वाराह का , पांचवां अवतार सांख्य योगी कपिल का , आठवां अवतार रिषभदेवजीका , सोलहवां परशुरामजीका , 18वां श्री रामका बीसवां अवतार कृष्णका बताया गया है ।
3- गर्भमें स्थित परिक्षितको अश्वस्थामा मारना चाहता था लेकिन कृष्ण उनकी रक्षा किये ।
4- कृष्ण एवं पांडव बंधु भीष्म पितामहसे मिलनें हेतु कुरुक्षेत्रकी यात्रा की और वहाँ भीष्म पितामहसे ज्ञान प्राप्त किया । भीष्म कुरुक्षेत्र में सूर्यके उत्तरायण होनेंकी प्रतीक्षामें बाणों की सेज पर लेटे हुए थे । युधिष्ठिरसे बात करते - करते सूर्य उत्तरायण हो गए और भीष्म परम धामकी यात्रा पर देह त्याग कर चल पड़े और युधिष्ठिर उनकी अंतिम क्रिया किये ।
5- विदुर महाभारत युद्धके समय कौरवों द्वारा तिरस्कृत होनें के कारण तीर्थ यात्रा पर थे और द्वारकाके पास प्रभास क्षेत्रमें उनको पता चला की युद्ध समाप्त हो चला है और युधिष्ठिर हस्तिनापुरके सम्राट बन चुके हैं । विदुर वहाँसे वापिस हो लिए और बृंदा बन में यमुना तट पर उनकी मुलाक़ात उद्धवसे हुयी । उद्धव प्रभु के बाल लीलाओं के सम्बन्ध में विदुर को ज्ञान दिया और यह भी बताया की प्रभु अपनें स्वधाम चले गए हैं और द्वारका सहित यदु कुल समाप्त हो गया है ।
6- विदुर हस्तिनापुर आये और अपनी यात्रा के सम्बन्ध में युधिष्ठिर को बताया लेकिन प्रभु के न होनें की बात को छिपा लिया । विदुरको सत्यका पता था अतः धृतराष्ट्र एवं गांधारीको सप्त श्रोत आखिरी समय ध्यान करने हेतु जानें को राजी कर लिए और वे सप्त श्रोतकी यात्रा पर चले गए । जहां सात ऋषियोंको प्रसन्न करने हेतु गंगा सात धाराओंमें विभक्त होती हैं उसे सप्त श्रोत कहते हैं ।सप्त श्रोत हरिद्वार और गंगोत्रीके मध्य कहीं होगा।
7- जिस समय द्वारका का एवं यदुकुलका अंत हुआ उस समय सात माहसे अर्जुन द्वारका में ही थे । कृष्ण अर्जुनको प्रभास क्षेत्रसे अपनें सारथी दारुकके माध्यमसे यह संदेशा द्वारका भेजा था कि आजसे ठीक सात दिन बाद द्वारका समुद्रमें समा जाने वाली है अतः द्वारका में जो लोग हैं उनको तुरंत अर्जुनके साथ इंद्रप्रष्ठ चले जाना चाहिए । प्रभु यह संदेश भेज कर स्व धाम चले गए । प्रभास क्षेत्र वह पवित्र तीर्थ है जहां पश्चिममें सरस्वती अरब सागरमें मिलती हैं और यदु कुलका अंत भी यहाँ हुआ था ।
8- जिस समय द्वारका का अंत होना था उस समय द्वारका प्रभुसे मिलनें 11 ऋषि लोग आये थे ( विश्वामित्र ,असित ,कण्व ,दुर्बासा ,भृगु ,अंगीरा ,कश्यप ,वामदेव ,अत्रि ,वशिष्ठ ,नारद ) । ये ऋषि प्रभुसे मिल कर पिंडारक क्षेत्रमें रुके हुए थे । जाम्बवती नंदन साम्बको स्त्री बना कर यदु पुत्र ऋषियोंसे मजाक किया और ऋषि उनके अंत होनें के साथ साथ द्वारका अंत होनें का श्राप दे दिया ।
9- प्रभुके आदेशसे सभी द्वारका बासी प्रभास क्षेत्र आ गए और स्त्रियाँ एवं बच्चे शंखोद्धारक क्षेत्र में जा रुके । प्रभासक्षेत्रमें पूजा - दान आदि किया गया फिर मैरेयक - वारुनी मदिरा पी कर सभीं यदुबंसी आपसमें लड्नें लगे और सबका अंत हो गया ।
10- कौशिकी नदीके तट पर समीक ऋषिके पुत्र श्रृंगी ऋषि परीक्षितको श्राप दिए कि आज से ठीक सात दिन बाद तुम्हारी मौत तक्षकके डंक मारने से होगी । परीक्षित राज्यका भार जन्मेजयको दे कर गंगाके तट पर आमरण अनसन पर बैठ गए तथा 66 वर्षीय परीक्षित को 16 वर्षीय शुखदेव जी भागवत की कथा सुनायी ।
~~ ॐ~~

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