Saturday, September 7, 2013

भागवत स्कन्ध - 10 की एक कथा

●● भागवत स्कन्ध - 10 से ●● 
^^ सन्दर्भ - भागवत : 10.46 + 10.82-10.84 तक ^^ ° कंश बधके समय नन्द -यशोदा और अन्य गोप -गोपियाँ मथुराके बाहर किसी बाग़में रुके हुए थे , उनको क्या पता कि यहाँ कंश -बध होनें वाला है , वे तो धनुषयज्ञ देखनें आये थे ,अपनें कान्हा के प्यारमें । खेल -खेलमें जब कंश का अंत हुआ तब उसके 08 भाई कान्हा एवं बलराम पर आक्रमण कर दिये और बलराम द्वारा मारे गए ।
 ° जब मथुरामें कान्हाका खेल समाप्त हुआ तब कान्हा पहुँचे माँ यशोदाके पास और बोले , मैया ! भूख लगी है , फिर क्या
 था ,कान्हाकी आवाज में सम्मोहन शक्ति प्रवल थी ,माँ सम्मोहित हो गयी और जो सोच रही थी ,उनके दिमाक से वह सोच निकल गयी और तुरंत दूध और चावलसे तैयार खीर ला कर दोनों भाइयोंको खिलाया ।
 ° कान्हा माँ यशोदाकी गोदी में बैठ कर बोले ,माँ अब आप लोग गाँव वापिस चले जाओ मेरा यहाँ कुछ काम बाकी है ,उसे पूरा करके आउंगा , नन्द और उनके साथी सभीं नन्द गाँव वापिस चले गए । यह कथा है जब माँ यशोदा की उम्र लगभग 35-40 साल की रही होगी और कान्हा 11 सालके थे ।
 ° कान्हा फिर नन्द गाँव नहीं गए ,वे गए उज्जैन सान्दीपनि 
मुनि ,उज्जैनके आश्रम ,जहां 64 दिनमें तीन वेदों और शास्त्रोंका अध्यन पूरा किया ।
 ° कान्हा स्वयं नन्द गाँव न जा कर उद्धवको भेजा , उद्धव देखनें में कान्हा जैसे ही दिखते थे और जब 05 साल के थे तब कान्हा की मिटटी की प्रतिमाएं बनाया कराये थे और उन प्रतिमाओं को पूजते थे । सम्पूर्ण ब्रजमें हवा फ़ैल गयी कि कान्हा मथुरासे आये हैं ,फिर क्या था ,सारा ब्रज ; गोप और गोपियाँ अपनें - अपनें कान्हासे मिलनें नन्द बाबा के घर भागे चले आये , सभीं एक बात कह रहे थे , मेरा कान्हा कहा है , मेरा कान्हा कहाँ हैं,इतना गहरा प्यार ? फिर एक गोपिका नन्दके घर के अन्दर गयी ,कान्हा को देखनें और अन्य सभीं घरके बाहर ही खड़े रहे । वहाँ एक मायूशीके अलावा और क्या था । सारे गोप और गोपियाँ निर्जीवसे अपनें अपनें घरको चल दिए जबकि उद्धव उनको कान्हाका सन्देश देना चाहते थे ।
 ** तब और अब : तब कान्हा 11 सालके बच्चे थे और आज वहीँ कान्हा कुरुक्षेत्र में पधारे हैं जिनका पौत्र भी ब्याहा जा चुका है ।अब आप गहराई से इस दृश्य को अपनें दिलमें उतारें , तब और अबमें क्या अंतर हुआ होगा ?
 ** सर्वग्रास सूर्य ग्रहण सर्व ग्रास अर्थात प्रकृति - प्रलय ऐसी परिस्थितिका पैदा होना । यह घटना महाभारत युद्धसे पहले की
 है । सारा ब्रज , नन्द -यशोदा ,गोप और गोपियोंका काफिला कुरुक्षेत्र पहुंचा । नन्द गाँवसे कुरुक्षेत्र लगभग 300 किलो मीटर की यात्रा में सभी ब्रज बासियों की आँखों में बाल कान्हा बसे रहे । ** ज्योंही कान्हासे कृष्ण बनें कान्हा माँ को देखा दूर से भागते हुए आये और माँ की उंगली पकड़ कर अपनें कैम्प में ले आये । यशोदा उन दिनों में खोयी रही जब कान्हा की उंगलियाँ पकड़ कर उनको चलाती थी और आज कान्हा उनको चला रहे हैं क्योंकी आज की यशोदा तब की यशोदासे लगभग 50 सालसे भी अधिक बड़ी है और वह कान्हा आज परदादा बन चुका है ।
 <> तीन माह कुरुक्षेत्रमें यशोदा अपनें कान्हा के संग रही , इस मिलनका कारण था सर्व ग्रास सूर्य ग्रहण और यह यशोदा - कान्हा मिलन आखिरी मिलन रहा ।
 ● भारतसे कृष्ण भक्ति सारे विश्वमें फ़ैल गयी , कृष्ण भक्तिके नाम पर राधाका नाम ही एक मात्र नाम है , लोग राधे - राधेका जाप करते हैं लेकिन किसी जो यशोदाका दृदय न मिल सका और जिसे यशोदाका हृदय मिला होगा वह मौन हो गया होगा ।यशोदाके दिल की झांकी दिखानेंके लिए हमारे पास कुछ नहीं है मात्र जो है वह मेरे मौन के परदे पर टपकते मेरे आँसू हैं ।
 ~~~ ॐ ~~~

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