Monday, September 23, 2013

कहाँ है मेरु पर्वतराज

● कहाँ हैं पर्वतराज मेरु ? ●
भारतके शास्त्रोंमें मेरु पर्वतका अपना अलग स्थान है , आखिर यह पर्वत है कहाँ ?
भागवत पुराणमें आप देखें : स्कन्ध : 3+4+ 5 +12 ** आज हम जिसे हिमालय कह रहे हैं उसकी उच्चतम शिखर अर्थात एवरेस्ट पौराणिक मेरु पर्वत हो सकती है । भागवत कहता है - मेरुके ऊपर ब्रह्म पूरी अर्थात ब्रह्माका निवास है और उसके घाटीमें नीचे 08 लोकपालोंकी अपनीं -अपनीं पुरियां हैं जैसे इंद्र आदि । गंगा स्वर्गसे ब्रह्म पूरीमें उतरी थी और उतरते ही चार धाराओं में विभक्त हो गयी । गंगाकी एक धारा सीता पूर्वकी ओर , एक चक्षु पश्चिमकी ओर ,भद्रा उत्तरकी ओर और अलखनंदा दक्षिणकी ओर क्रमशः भाद्रश्व वर्ष ,केतुमाल वर्ष , उत्तर कुरु और भारत से बहती हुयी सागर से जा मिली हैं ।
** अब मेरुकी भौगोलिक स्थितिके बारे देखते हैं :
* भारतवर्षके उत्तरमें क्रमशः हिमालय पर्वत , किम्पुरुष वर्ष , हेमकूट पर्वत ,हरि वर्ष और निषध पर्वत हैं । निषधके उत्तरमें है मेरु पर्वत जिसके ऊपर सुवर्ण ब्रह्माकी पूरी है ।
* मेरुके उत्तरमें क्रमशः नील पर्वत ,रम्यकवर्ष ,श्वेत पर्वत , हिरण्यम वर्ष ,श्रृंगवान पर्वत और उसके उत्तरमें है उत्तर कुरु वर्ष ।
** मेरुके पूर्वमें गंधमादक पर्वत और उसके पूर्वमें भाद्राश्वावर्ष है और मेरुके पश्चिममें माल्यावान पर्वत
है । माल्यावान पर्वतके पश्चिंममें है केतुमाल वर्ष ।
# सतयुगके प्रारम्भमें ब्रह्मावर्तके नरपति स्यायम्भुव मनुकी पुत्री देवहूतिका ब्याह हुआ, विन्दुसरके कर्मद ऋषिके साथ और पांचवें अवतार रूपमें कपिल मुनिका जन्म हुआ ।विन्दुसर सरस्वती नदीके तट पर था और उसमें पानी सरस्वतीका होता था ।आज विन्दुसर अहमदाबाद - उदयपुर रोड पर अहमदाबाद से 130 किलो मीटर पर है। विन्दुसर तीन तरफसे सरस्वतीसे घिरा था। ब्रह्मावर्तमें सरस्वती पूर्व मुखी थे और यह प्रदेश यमुना तट पर होता था । ब्रह्मावर्त वह स्थान है जहां दुसरे अवतार रूप में प्रभु वामन (सुकर )रूप धारण किया और पृथ्वीको रसातलसे ऊपर लेकर आये। ब्रह्मावर्तकी राजधानी थी बर्हिष्मती जिसका अर्थ है कुश की चटाई।इस देशमें कुशका जंगल पाया जाता था । भागवत कहता है - कर्मद ऋषि विमानसे अपनी पत्नी के साथ विन्दुसर से मेरु की घाटी की यात्रा की थी और बहुत समय तक वे वहाँ विहार करते रहे । उनके विहार करनें के स्थानों में सुरसन , वैश्रम्भक , नंदन , पुष्पभद्रा, चैत्ररथ , आदि उद्यान और मांस सरोवर हैं ।मृकंद ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ऋषि का आश्रम पुष्पभद्रा नदी के तट पर चित्र शिलाके पास में था । मार्कंडेय ऋषिको पुष्पभद्राके तट नर नारायणके आशीर्वादसे माया का प्रलय कालीन स्वरुप देखनेंको मिला था जिसमें एक पत्तेके ऊपर प्रभु कृष्ण बाल रूपमें उन्हें दिखे थे ।
** मार्कंडेय ऋषिके आश्रमके विस्तारसे ऐसा दिखता है कि मानस सरोवर पुष्पभद्रा नदी और पुष्पभद्र उद्यान मेरुकी घाटीमें थे । आप अब मेरुके भौगोलिक स्थितिके सम्बन्ध में गूगल मैप पर देखते हुए कोई राय बना सकते हैं ।
~~~ ॐ ~~~

1 comment:

  1. पृथ्वी के पूर्व-पच्छिम में ३० धड़ी का दिनरात होता है, पृथ्वी के उत्तर-दक्षिण में छ: महीना के दिन रात होता है, पृथ्वी के उत्तरकोन में दिनरात एक साथ स्थित रहा करता है इसलिए उसे मणिमय प्रदेश कहते है पृथ्वी के अंतिम सीमा पर लोकालोक पर्वत है जहां सूर्य का स्तम्भ स्थापित है उस और देखने में ही डर लगता है वह अत्यंत काले धंधोर है इन सब के बीच जम्बूद्वीप है जिसका आकार आधे चन्द्रमा के सामान है इसके बीच मेरु पर्वत है जो प्रचंड सूर्य के सामान और स्वच्छ सीसे के भाति आकाश तक खड़ा है जिसके ऊपर भगवान का निवास स्थान है उस स्थान पर सबसे ऊपर ब्रह्मा जी की सभा है और उनके चारो ओर समस्त दिक्कपालों का महल है
    यह तो पुराण के अनुसार आपको बताया गया है अब आज के अनुसार समझे सिर्फ भारत वर्ष में ही सब कुछ नहीं है जो आप सब भारवर्ष में ढूंढ रहे है ऐसा तो कदापि नहीं मिलेगा यह तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की बाते बता रहा है जिसमे भारतवर्ष को अति-उत्तम बताया है जिसे कर्मभूमि कहते है इसके अलावा जितने भी वर्ष है वह सब भोग-भुमिया है
    पूर्व-पछिम ३० धड़ी का दिनरात होता है अर्थात एशिया-रुष-अफ्रिका पूर्व हुआ तथा उत्तरी अमेरिका-दक्षिणी अमेरिका- डेनमार्क यह पच्छिम हुआ इस समय यह पूर्व और पच्छिम है
    उत्तर और दक्षिण में छ: महीना के दिन-रात होता है यह नार्थ अटलांटिका और साउथ अटलांटिका है
    पृथ्वी के उत्तरकों जहा दिनरात एक साथ स्थित रहते है इसे आजकल डेनमार्क में अलास्का नाम के जगह हुआ वहा ४ प्रकार के दिन और चार प्रकार की रात एक ही समय में होती है इसलिए इसे मणिमय प्रदेश कहागया है क्योकि मणियों की तरह कही उजाला कही अन्धेरा रहता है
    पृथ्वी का जहां अंतिम सीमा है वहाँ सूर्य का स्तम्भ स्थापित है और अत्यंत अन्धेरा है यह इस समय काउला आइजलैंड नाम के जगह है जो पृथ्वी से बाहर है जिसे विज्ञान ब्लैक हॉल कहते है इसी ब्लैक हॉल रूपी सूर्य के स्तम्भ पर सुर चक्र लगा हुआ है जिसके कारण सूर्य में ब्लैक हॉल है यह स्तम्भ ब्रह्माण्ड के अंतिम सिरा है वहा तक स्थापित है इसके दुरी भी पुराण में दिया गया है जो की मुझे अभी याद नहीं आ रहा जो लिख देता
    पृथ्वी के मध्य जम्भू द्वीप है जिसका आकार आधा चन्द्रमा के सामान है यह इस समय बरमूडा है बरमूडा से १२ कि० मि० दूर वह मेरु पर्वत है जो ३ कि० मि० की गोलाई में फैला हुआ है इस पर समस्त देवता निवास करतेहै यहाँ आप या विज्ञान नहीं पहुंच सकता है विज्ञान ने इसका नाम मैगनेटिक फिल्ड दिया हुआ है जबकि अगर आज के भाषा में कहु तो उसे सूप-डुपर-स्टीम का नाम दे सकते है
    और आगे जानने की जिज्ञासा है तो संवाद करे अन्यथानही

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