Thursday, October 27, 2011

कौन है प्रज्ञावान

गीता सूत्र –258

यदा संहरते च अयम्

कूर्मः अंगानि एव सर्वशः

इन्द्रियाणि इंद्रिय – अर्थेभ्य:

तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता


शाब्दिक अर्थ … .

जब समेत लेता है और यह---

कछुवा अंगों को सदृश एक साथ----

इन् द्रियाँ बिषयों से----

उसकी प्रज्ञ स्थिर होती है//


अब भावार्थ को देखें------

प्रज्ञावान योगी का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण ऐसे होता है जैसे एक कछुवे का नियंत्रण अपने अंगों पर होता है //

The Yogin established in wisdom has control over his senses similar to a Tortoise – control over its organs .

गीता का श्लोक देखा और बुद्धि स्तर पर उसका अर्थ भी देखा अब आप इस सूत्र को ह्रदय से देखो /

कौन है प्रज्ञावान?

वह जिसके तन,मन एवं बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा बह रही होती है तब वह उस काल में प्रज्ञावान होता है/प्रज्ञावान की ऊर्जा सीधे परम आयाम में पहुंचा सकती है यदि वह योगी उस स्थिति को सम्हाल सके तो//


=====ओम्====


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