Monday, October 3, 2011

गीता जीवन मार्ग अगला चरण

गीता सूत्र2.62 , 2,63

यहाँ गीता कहता है------

मन में चल रहा मनन आसक्ति पैदा करता है , आसक्ति से कामना उठती है और कामना टूटने पर क्रोध की ज्वाला फैलती है जो क्रोधी को भष्म कर देती है //

गीता के इस सत्य बचन में क्या समझना है चाहे आप हिंदी में समझें या अंग्रेजी में कोई फर्क नहीं पड़ता / गीता के इस बचन में क्या कोई संदेह की गुंजाइश दिख रही है ? ज्ञानेन्द्रियों का स्वभाव है अपने - अपने बिषयों को तलाशना और उनमें रमना / बिषयों में छिपे राग – द्वेष इंद्रियों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं और ज्योही कोई ज्ञानेन्द्रिय अपने बिषय पर रुकती है , मन में उस बिषय के रती मनन प्रारम्भ हो जाता है , मन किसी न किसी तरह उस बिषय के भोग की ब्यवस्था के बारे में सोचनें लगता है / मन में उठी सोच ही कामना है / कामना और क्रोध दोनों राजस गुण के तत्त्व हैं / कामना जब टूटती सी दिखाती है तब कामना की ऊर्जा क्रोध में बदल जाती है और इस बदलाव में अहंकार का पूरा समर्थन होता है // जब आप को क्रोध उठे तो देखना किसी और को नहीं स्वयं को / क्रोध की साधना सीधे ह्रदय परिवर्तन करती है लेकिन है कठिन क्योंकि क्रोध की अवाधि बहुत ही छोटी होती है /


====ओम=============


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