गीता सूत्र –3.7
य : तु इन्द्रियाणि मनसा
नियम्य आरभते अर्जुन
कर्म – इंद्रियै : कर्मयोगम्
असक्त : सः विशिष्यते //
कर्म में कर्म – इंद्रियों को मन से नियोजित करके कर्म की पकड़ से बचे रहना उत्तम होता है,कर्म योग के लिए//
इस सूत्र के पहले सूत्र में गीता कहता है , कर्म – इंद्रियों को भौतिक रूप से बिषयों से दूर रखना मनुष्य को मिथ्याचारी बना सकता है क्योंकि इंद्रियों को बिषयों से दूर रखनें से क्या होगा ? मन तो उन – उन बिषयों पर मनन करता ही रहेगा //
कर्म योग में निम्न बातों पर ध्यान रहना चाहिए :-------
बिषयों को समझना चाहिए
बिषय – इंद्रिय से सम्बन्ध को समझना चाहिए
बिषय – इंद्रिय मिलन से जो प्राप्ति होती है उसे समझना चाहिए
और
यह समझना चाहिए कि अभी जो इंद्रिय सुख मिलनें वाला दिख रहा है
वह कौन सा सुख होगा?
=====ओम्======
No comments:
Post a Comment