Sunday, October 23, 2011

कर्म योग की बुनियादी बात

गीता सूत्र –3.7

: तु इन्द्रियाणि मनसा

नियम्य आरभते अर्जुन

कर्म – इंद्रियै : कर्मयोगम्

असक्त : सः विशिष्यते //

कर्म में कर्म – इंद्रियों को मन से नियोजित करके कर्म की पकड़ से बचे रहना उत्तम होता है,कर्म योग के लिए//

इस सूत्र के पहले सूत्र में गीता कहता है , कर्म – इंद्रियों को भौतिक रूप से बिषयों से दूर रखना मनुष्य को मिथ्याचारी बना सकता है क्योंकि इंद्रियों को बिषयों से दूर रखनें से क्या होगा ? मन तो उन – उन बिषयों पर मनन करता ही रहेगा //

कर्म योग में निम्न बातों पर ध्यान रहना चाहिए :-------

  • बिषयों को समझना चाहिए

  • बिषय – इंद्रिय से सम्बन्ध को समझना चाहिए

  • बिषय – इंद्रिय मिलन से जो प्राप्ति होती है उसे समझना चाहिए

    और

  • यह समझना चाहिए कि अभी जो इंद्रिय सुख मिलनें वाला दिख रहा है

    वह कौन सा सुख होगा?


=====ओम्======


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