गीता सूत्र –14.7
रजो राग – आत्मकम् विद्धि
तृष्णा संग समुद्भवं /
तत् निबंध्नाति कौन्तेय
कर्म संगेन देहिनम् /
तृष्णा[लोभ]एवं राग प्रकृति के राजस गुण से उत्पन्न होते हैं//
Craving and lust they spring from the passionate natural mode .
गीता सूत्र –2.60
यतत : हि अपि कौन्तेय
पुरुषस्य विपश्चितः /
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि
हरन्ति प्रसभं मन : //
बिषयों से सम्मोहित इन् द्रियाँ मं को भी प्रभावित कर लेती हैं /
Impetuous senses carry off the mind of the person who is controlling his senses physically .
अप के लिए गीता के दो सूत्र यहाँ दिए गए , आप इनको देखें और इनका आप अपना अर्थ लगाएं मैं जो अर्थ समझ सका हूँ वह अप के सामनें है //
गीता के इन दो सूत्रों से आप अपनें में कर्म – योग की बुनियाद डाल सकते हैं//
======ओम्==============
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