मनुष्य में वह कौन सी ऊर्जा है जो उसे चैन से कहीं रुकनें नहीं देती?
गीता कहता है -----
खान , पान , रहन – सहन एवं विचार मनुष्य के अंदर तीन प्रकार की ऊर्जा पैदा कर्ता है ; सात्त्विक , राजसएवंतामस / इन तीन प्रकार की ऊर्जा आपस में मिल कर मनुष्य के अंदर एककर्म ऊर्जाका निर्माण करती हैं जोस्वभावबनाता है , मनुष्य अपनें स्वभाव के आधार पर सोचता है , सोच के आधार पर वह वैसा कर्म करता है और कर्म के फल के रूप में जो उसे मिलता है वह यातो सुख होता है या दुःख / जब मनुष्य सुख का अनुभव करता है तब स्वयं को कर्ता दिखाता है , सीना तान के बाहर बैठता है जिस से आते जाते लोग उसे सलाम कर सकें और जब दुखके अनुभव से जुजर रहा होता है तब छिप के रहना ज्यादा पसंद करता है लेकिन लोग उसे छिपनें कहाँ देते हैं ? वह जो दुखी है वह दुःख का कारण स्वयं को नहीं मानता , वह यही कहता फिरता है कि भाई क्या करें किया तो सब ठीक ही था लेकिन नसीब धोखा दे गयी , प्रभु को मंजूर न था और सुननें वाले सभी उसके हाँ में हाँ मिला कर अपनें - अपनें घर को चले जाते हैं / अभी तक आप जो देखा वह था अँधेरे में बसे हुए ब्यक्ति के जीवन के बारे में और वह जो गीता में बसा हुआ है वह क्या कहता है ? गीता - संन्यासी अपनें खान – पान , रहन – सहन एवं ब्यवहार को देखता रहता है और उनसे उसके अंदर जो ऊर्जा उठती है उसको एवं उसकी चाल पर अपनी दृष्टि रखता है / वह यह समझता है कि वह जो कर रहाहै वह करनें वाला वह नहीं प्रकृति के तीन गुण हैं और ये तीन गुण हमारे रहन – सहन , खान – पान एवं सोच पर निर्भर करते हैं / गीता संन्यासी गुणों की गति पर अपनी दृष्टि जमाये हुए एक दिन स्वयं गुणों का द्रष्टा बन बैठता है और गुणों का द्रष्टा हीब्रह्मकहलाता है //
आप अपनें खान – पान, रहन – सहन, ब्यवहार एवं मन की गति पर अपनें ध्यान को केंद्रित करें और केंद्रित रखनें का अभ्यास करते रहे/ यह अभ्यास – योग आप को गीता के श्री कृष्ण से मिला देगा//
======ओम्===============
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