Friday, September 2, 2011

गीता के दो सौ सूत्रों का समापन

गीता के 200 सूत्रों की श्रंखला का आज अंत हो रहा है , आइये देखते हैं इन कुछ सूत्रों को //

सूत्र –14.8

तामस गुण मोह , अज्ञान , आलस्य अधिक निद्रा एवं प्रमाद से पहचाना जाता है //

सूत्र –17.2

गुण आधारित श्रद्धा तीन प्रकार की होती है //

गीता के इस बिषय को समझते हैं-------

तीन गुण मनुष्य के स्वभाव का निर्माण करते हैं , स्वभाव से श्रद्धा बनती है और श्रद्धा के आधार पर मनुष्य कर्म , साधना एवं अन्य सभीं कृयाओं को करता है //

गीता में इस बात को देखनें के लिए आप गीता के सूत्र – 3.5 , 3.27 , 3.33 , 18.59 , 18.60 को एक सात देखें तब ऊपर कही गयी बात को आप समझ सकते हैं //

सूत्र –14.22

तत्त्व – वित् तीन गुणों के बाहर के आयाम में रहता है //

सूत्र –14.25

गुणातीत समभाव – योगी होता है //

सूत्र –15.10

ज्ञानी अपने तन , मन एवं बुद्धि का द्रष्टा तो रहता ही है और अंत समय आनें पर वह स्वयं के मृत्यु का भी द्रष्टा बन जाता है //

सूत्र –13.26

कोई कर्म के माध्यम से , कोई सांख्य – योग से , कोई भक्ति से तो कोई ध्यान में प्रभु को अपने ह्रदय में देखता है //


गीता कोई नयी बात नहीं कहता … ....

गीता उसे कहता है ........

जिसको हम हर दिन , हर पल देखते हैं लेकिन उसके प्रति बेहोश रहते हैं //


गीता कुछ नहीं करता मात्र हमें जगाता रहता है//


=======ओम============


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