Tuesday, September 6, 2011

गीता जीवन मार्ग भाग एक

आज से गीता जीवन – मार्ग नाम से गीता-राह की यात्रा प्रारम्भ हो रही है,देखना,यह यात्रा बेहोशी भरी न हो,इस यात्रा में हर कदम को होश के साथ उठाना और गिराना है/

गीता सूत्र –2.14

इन्द्रिय सुख – दुःख अल्पकालीन होते हैं , इनके सम्मोहन को समझना चाहिए /

pleasure – pain as axperienced by our senses do not last long and one should understant it .

गीता सूत्र –5.22

बुद्ध पुरुष जानते हैं , इन्द्रिय भोग अनादि नहीं होते और दुःख के श्रोत होते हैं /

pleasure of senses are casual and they are the source pain . A Buddha does not get delighted from senses – pleasures .

गीता सूत्र –18.38

भोग सुख भोग के समय अमृत सा लगता है लेकिन इसका परिणाम बिष की स्याही से लिखा जाता है

senses happiness is passionate happiness and it is felt as nectar in the beginning but its result has poison in it .

गीता सूत्र –3.34

सभीं पांच इन्द्रिय बिषयों में राग – द्वेष की उर्जा होती है /

all sense objects have enegy of attachment and aversion .

गीता सूत्र –2.64

जिसकी इन्द्रियाँ बिषयों में बिहरती हों और बिषयों के सम्मोहन से दूर रहती हो वह ब्यक्ति प्रभु का प्रसाद प्राप्त ब्यक्ति होता है /

he whose senses dwelling in their objects without being influenced by them , gets purity of the cosmos .


आज से प्रारम्भ करो--------

जो देखो,जो सुनो,जो छूओ,जो खाओ – पीओ और जो सूँघो,उनके भाव जो मन में उठें उनको समझनें का अभ्यास करो/यह अभ्यास – योग गीता का बिषय – इन्द्रिययोग है//



=====ओम======


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