Sunday, September 25, 2011

गीता जीव मार्ग भाग छः

गीता सूत्र –2.62

ध्यायतः विषयान् पुंसः

संग तेषु उपजायते /

संगात् सज्जायते कामः

कामत् क्रोधः अभिजायते //

गीता में प्रभु अर्जुन को बता रहे हैं ---------

मन में इन्द्रिय बिषय की सोच का उठना यह बताता है कि मन – बुद्धि में काम – ऊर्जा का संचार शुरू हो चुका है/काम ऊर्जा राजस गुण की ऊर्जा होती है जो समय एवं परिस्थिति के अनुकूल कामना क्रोध एवं लोभ के रूप में बाहर से दिखती है/


The man dwelling on sense – objects develops attachment for them ; attachment springs up desire , and from the failure of desires anger appears .


गीता यहाँकाम , कामना , क्रोध , लोभ एवं राजस गुणके सम्बन्ध को बता रहा है / गीता सूत्र 3.37 में प्रभु कहते हैं ------

कामः एषः क्रोधः एषः रजोगुण समुद्भवः/

अर्थात

काम – क्रोध राजस गुण के तत्त्व हैं//

मनुष्य के पास मन एक ऐसा माध्यम है जो काम – राम दोनों में प्रवेश दिलाता है और मन का ध्यान काम की समझ से राम में पहुंचा कर स्वयं लुप्त हो जाता है /

गीता सूत्र –8.8 में प्रभु कहते हैं---

मन में जो मुझे बसाता है वह मुझे प्राप्त करता है/मन जबतक भोग तत्त्वों की बस्ती बना रहता है तबतक मनुष्य की यात्रा नर्क की ओर जाती रहती है और जिस घडी मन भोग तत्त्वों से खाली हो जाता है उस मन में प्रभु की धुन गूजनें लगती है//




=============ओम=============


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