Wednesday, September 21, 2011

गीत जीवन मार्ग भाग पांच


गीता जीवन मार्ग [भाग – 05 ]


गीता सूत्र –2.56


दुखेषु अनुद्विग्र – मना:


सुखेषु विगत स्पृहा:


वीत राग भय क्रोध:


स्थिति धी: मुनि: उच्यते//


वह जिसका मन सुख – दुःख से प्रभावित न होता हो


वह जो राग,भय एवं क्रोध से अछूता रहता हो


वह मुनि स्थिर – प्रज्ञ होता है//


Whose mind remins unperturbed midst of sorrow and pleasure


Who remains untouched by passion , fear , and rage


Such man is called a sage settled in intelligence .




आप – हम कल्पना तो कर ही सकते हैं कि-----


वह ब्यक्ति इस संसार में कैसा दिखता होगा


जो ----


तन – मन से-----


राग,भय एवं क्रोध रहित रहता हो----


और


जो सुख – दुःख के अनु भव से परे रहता हो//


// समभाव – योगी स्थिर – प्रज्ञ योगी होता है //




=====ओम======




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