Saturday, September 17, 2011

गीता जीवन मार्ग भाग चार

गीता सूत्र –4.10

वीत राग भय क्रोधा:

मत मया माम् उपाश्रिता:

वहव: ज्ञान तपसा

पूता: मत् भावं आगता: //

राग,भय एवं क्रोध विमुक्त ब्यक्ति ज्ञान तप से मेरे भाव को प्राप्त करता है//

My state of being is possible through austerity of wisdom . This ultimate state of purity is possible only when one is out of the attachment of passion , fear and anger .


बोलना आसान , सुनना और आसान लेकिन ----

अपनें अनुभव को बोलना कठिन , और उसे सुनना और भी कठिन //

प्रभु कह रहे हैं-----

राग , भय एवं क्रोध रहित ब्यक्ति ज्ञानी है और मेरे भाव को समझता है //

राग,भय एवं क्रोध रहित कौन हो सकत है?

प्रभु तो भावातीत हैं फिर उनके भाव को समझना क्या है ?

राग एवं क्रोध तो राजस गुण के तत्त्व हैं और भय है तामस गुण का तत्त्व अर्थात …..

प्रभु कह रहे हैं,वह जो राजस एवं तामस गुण से अप्रभावित है वह मेरे भाव को समझता है और साथ यह भी इशारा कर रहे हैं किवह ज्ञानी भी होता है/

प्रभु एवं उनका भाव अब्यक्तातीत है अतः इसे मैं ब्यक्त नहीं कर सकता लेकिन इतना जरुर कहूँगा,वह जो गुणों के सम्मोहन के बाहर हो जाता है,प्रभु एवं उनके भाव को समझता है और उस भाव में वह बस जाता है,उसे और कहीं चैन ही नहीं मिलता//


====ओम=====


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