Saturday, September 28, 2013

भागवत स्कन्ध - 01 सार

* स्कन्ध - 01 का सार *
> स्कन्ध -1 में 809 श्लोक 19 अध्यायोंमें बटे हुए हैं ।
इस स्कन्धका सार कुछ इस प्रकार है :----
1- नारद बृंदाबनमें यमुनाके तट पर भक्ति से मिले। भक्ति वहाँ अपनें बेटे ज्ञान एवं वैराज्ञ के साथ थी । भक्ति कहती है - मैं द्रविण देश में पैदा हुयी ,कर्नाटकमें बढ़ी , महाराष्ट्रमें बच्चे हुए और गुजरात जब मैं पहुंची तब मैं और मेरे दोनों बच्चे उम्रसे अधिक बूढ़े हो गए और वहाँ मेरा अस्तित्व ही समाप्त सा हो गया । मैं अपनें बच्चोंके संग बृंदाबन आ गयी । यहाँ मैं तो जवान हो गयी लेकिन देखो मेरे दोनों बच्चे मुझसे भी अधिक बूढ़े हैं और दिन भर सोते रहते हैं । नारद कहते हैं - यह बृंदाबन भक्ति केलिए हैं जहां भक्ति सदैव जवान रहती है लेकिन यहाँ ज्ञान - वैराज्ञके लिए कोई जगह नहीं , ज्ञान - वैराज्ञ को चाहनें वाले यहाँ नहीं हैं । > नारदकी बातको समझिये ; वह भक्ति जिससे ज्ञान - वैराज्ञ नहीं आता , वह भक्ति अपरा भक्ति है जो परा भक्तिका द्वार बन सकती है लेकिन बृंदाबनमें परा भक्तिका उदय नहीं हो सकता । बात है तो बहुत कडुयी पर ध्यान योज्ञ है ।
2- विष्णुके विभिन्न अवतारोंका वर्णन किया गया है जैसे दूसरा अवातार वाराह का , पांचवां अवतार सांख्य योगी कपिल का , आठवां अवतार रिषभदेवजीका , सोलहवां परशुरामजीका , 18वां श्री रामका बीसवां अवतार कृष्णका बताया गया है ।
3- गर्भमें स्थित परिक्षितको अश्वस्थामा मारना चाहता था लेकिन कृष्ण उनकी रक्षा किये ।
4- कृष्ण एवं पांडव बंधु भीष्म पितामहसे मिलनें हेतु कुरुक्षेत्रकी यात्रा की और वहाँ भीष्म पितामहसे ज्ञान प्राप्त किया । भीष्म कुरुक्षेत्र में सूर्यके उत्तरायण होनेंकी प्रतीक्षामें बाणों की सेज पर लेटे हुए थे । युधिष्ठिरसे बात करते - करते सूर्य उत्तरायण हो गए और भीष्म परम धामकी यात्रा पर देह त्याग कर चल पड़े और युधिष्ठिर उनकी अंतिम क्रिया किये ।
5- विदुर महाभारत युद्धके समय कौरवों द्वारा तिरस्कृत होनें के कारण तीर्थ यात्रा पर थे और द्वारकाके पास प्रभास क्षेत्रमें उनको पता चला की युद्ध समाप्त हो चला है और युधिष्ठिर हस्तिनापुरके सम्राट बन चुके हैं । विदुर वहाँसे वापिस हो लिए और बृंदा बन में यमुना तट पर उनकी मुलाक़ात उद्धवसे हुयी । उद्धव प्रभु के बाल लीलाओं के सम्बन्ध में विदुर को ज्ञान दिया और यह भी बताया की प्रभु अपनें स्वधाम चले गए हैं और द्वारका सहित यदु कुल समाप्त हो गया है ।
6- विदुर हस्तिनापुर आये और अपनी यात्रा के सम्बन्ध में युधिष्ठिर को बताया लेकिन प्रभु के न होनें की बात को छिपा लिया । विदुरको सत्यका पता था अतः धृतराष्ट्र एवं गांधारीको सप्त श्रोत आखिरी समय ध्यान करने हेतु जानें को राजी कर लिए और वे सप्त श्रोतकी यात्रा पर चले गए । जहां सात ऋषियोंको प्रसन्न करने हेतु गंगा सात धाराओंमें विभक्त होती हैं उसे सप्त श्रोत कहते हैं ।सप्त श्रोत हरिद्वार और गंगोत्रीके मध्य कहीं होगा।
7- जिस समय द्वारका का एवं यदुकुलका अंत हुआ उस समय सात माहसे अर्जुन द्वारका में ही थे । कृष्ण अर्जुनको प्रभास क्षेत्रसे अपनें सारथी दारुकके माध्यमसे यह संदेशा द्वारका भेजा था कि आजसे ठीक सात दिन बाद द्वारका समुद्रमें समा जाने वाली है अतः द्वारका में जो लोग हैं उनको तुरंत अर्जुनके साथ इंद्रप्रष्ठ चले जाना चाहिए । प्रभु यह संदेश भेज कर स्व धाम चले गए । प्रभास क्षेत्र वह पवित्र तीर्थ है जहां पश्चिममें सरस्वती अरब सागरमें मिलती हैं और यदु कुलका अंत भी यहाँ हुआ था ।
8- जिस समय द्वारका का अंत होना था उस समय द्वारका प्रभुसे मिलनें 11 ऋषि लोग आये थे ( विश्वामित्र ,असित ,कण्व ,दुर्बासा ,भृगु ,अंगीरा ,कश्यप ,वामदेव ,अत्रि ,वशिष्ठ ,नारद ) । ये ऋषि प्रभुसे मिल कर पिंडारक क्षेत्रमें रुके हुए थे । जाम्बवती नंदन साम्बको स्त्री बना कर यदु पुत्र ऋषियोंसे मजाक किया और ऋषि उनके अंत होनें के साथ साथ द्वारका अंत होनें का श्राप दे दिया ।
9- प्रभुके आदेशसे सभी द्वारका बासी प्रभास क्षेत्र आ गए और स्त्रियाँ एवं बच्चे शंखोद्धारक क्षेत्र में जा रुके । प्रभासक्षेत्रमें पूजा - दान आदि किया गया फिर मैरेयक - वारुनी मदिरा पी कर सभीं यदुबंसी आपसमें लड्नें लगे और सबका अंत हो गया ।
10- कौशिकी नदीके तट पर समीक ऋषिके पुत्र श्रृंगी ऋषि परीक्षितको श्राप दिए कि आज से ठीक सात दिन बाद तुम्हारी मौत तक्षकके डंक मारने से होगी । परीक्षित राज्यका भार जन्मेजयको दे कर गंगाके तट पर आमरण अनसन पर बैठ गए तथा 66 वर्षीय परीक्षित को 16 वर्षीय शुखदेव जी भागवत की कथा सुनायी ।
~~ ॐ~~

Monday, September 23, 2013

कहाँ है मेरु पर्वतराज

● कहाँ हैं पर्वतराज मेरु ? ●
भारतके शास्त्रोंमें मेरु पर्वतका अपना अलग स्थान है , आखिर यह पर्वत है कहाँ ?
भागवत पुराणमें आप देखें : स्कन्ध : 3+4+ 5 +12 ** आज हम जिसे हिमालय कह रहे हैं उसकी उच्चतम शिखर अर्थात एवरेस्ट पौराणिक मेरु पर्वत हो सकती है । भागवत कहता है - मेरुके ऊपर ब्रह्म पूरी अर्थात ब्रह्माका निवास है और उसके घाटीमें नीचे 08 लोकपालोंकी अपनीं -अपनीं पुरियां हैं जैसे इंद्र आदि । गंगा स्वर्गसे ब्रह्म पूरीमें उतरी थी और उतरते ही चार धाराओं में विभक्त हो गयी । गंगाकी एक धारा सीता पूर्वकी ओर , एक चक्षु पश्चिमकी ओर ,भद्रा उत्तरकी ओर और अलखनंदा दक्षिणकी ओर क्रमशः भाद्रश्व वर्ष ,केतुमाल वर्ष , उत्तर कुरु और भारत से बहती हुयी सागर से जा मिली हैं ।
** अब मेरुकी भौगोलिक स्थितिके बारे देखते हैं :
* भारतवर्षके उत्तरमें क्रमशः हिमालय पर्वत , किम्पुरुष वर्ष , हेमकूट पर्वत ,हरि वर्ष और निषध पर्वत हैं । निषधके उत्तरमें है मेरु पर्वत जिसके ऊपर सुवर्ण ब्रह्माकी पूरी है ।
* मेरुके उत्तरमें क्रमशः नील पर्वत ,रम्यकवर्ष ,श्वेत पर्वत , हिरण्यम वर्ष ,श्रृंगवान पर्वत और उसके उत्तरमें है उत्तर कुरु वर्ष ।
** मेरुके पूर्वमें गंधमादक पर्वत और उसके पूर्वमें भाद्राश्वावर्ष है और मेरुके पश्चिममें माल्यावान पर्वत
है । माल्यावान पर्वतके पश्चिंममें है केतुमाल वर्ष ।
# सतयुगके प्रारम्भमें ब्रह्मावर्तके नरपति स्यायम्भुव मनुकी पुत्री देवहूतिका ब्याह हुआ, विन्दुसरके कर्मद ऋषिके साथ और पांचवें अवतार रूपमें कपिल मुनिका जन्म हुआ ।विन्दुसर सरस्वती नदीके तट पर था और उसमें पानी सरस्वतीका होता था ।आज विन्दुसर अहमदाबाद - उदयपुर रोड पर अहमदाबाद से 130 किलो मीटर पर है। विन्दुसर तीन तरफसे सरस्वतीसे घिरा था। ब्रह्मावर्तमें सरस्वती पूर्व मुखी थे और यह प्रदेश यमुना तट पर होता था । ब्रह्मावर्त वह स्थान है जहां दुसरे अवतार रूप में प्रभु वामन (सुकर )रूप धारण किया और पृथ्वीको रसातलसे ऊपर लेकर आये। ब्रह्मावर्तकी राजधानी थी बर्हिष्मती जिसका अर्थ है कुश की चटाई।इस देशमें कुशका जंगल पाया जाता था । भागवत कहता है - कर्मद ऋषि विमानसे अपनी पत्नी के साथ विन्दुसर से मेरु की घाटी की यात्रा की थी और बहुत समय तक वे वहाँ विहार करते रहे । उनके विहार करनें के स्थानों में सुरसन , वैश्रम्भक , नंदन , पुष्पभद्रा, चैत्ररथ , आदि उद्यान और मांस सरोवर हैं ।मृकंद ऋषि के पुत्र मार्कंडेय ऋषि का आश्रम पुष्पभद्रा नदी के तट पर चित्र शिलाके पास में था । मार्कंडेय ऋषिको पुष्पभद्राके तट नर नारायणके आशीर्वादसे माया का प्रलय कालीन स्वरुप देखनेंको मिला था जिसमें एक पत्तेके ऊपर प्रभु कृष्ण बाल रूपमें उन्हें दिखे थे ।
** मार्कंडेय ऋषिके आश्रमके विस्तारसे ऐसा दिखता है कि मानस सरोवर पुष्पभद्रा नदी और पुष्पभद्र उद्यान मेरुकी घाटीमें थे । आप अब मेरुके भौगोलिक स्थितिके सम्बन्ध में गूगल मैप पर देखते हुए कोई राय बना सकते हैं ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, September 21, 2013

भारत वर्ष और भरत - 01

● भारत और भरत -1● 
<> भारत वर्ष भागवतमें ( स्कन्ध -5 )
 * पृथ्वी सात द्वीपोंमें विभक्त है और जम्बू द्वीप में भारत वर्ष है जिसका प्राचीन नाम अजनाभ खंड है । भारत वर्षको समझनें केलिए जम्बू द्वीपका भूगोल समझते हैं । 
<> जम्बू द्वीपका भूगोल <>
 < इस द्वीपके मध्यमें इलाबृत वर्ष ( देश ) है जिसके मध्य में है पर्वत राज मेरु । 
< मेरुके शिखर पर है ब्रह्माकी सुवर्णमयी ब्रह्मापुरी और उसके नीचे इंद्र जैसे लोकपालों की पुरियाँ हैं ।इस बिषय पर गहराईसे सोचना होगा कि यह जगह हिमालय से आगे दो पर्वत एवं दो देशो से आगे इलाबृत तथा मेरुकी स्थिति कहाँ हो सकती है ? 
●● गंगा ब्रह्मापुरीमें उतरती हैं और इनकी चार धाराएं बन जाती
 हैं ; भद्रा उत्तरकी ओर , अलखनंदा दक्षिणकी ओर , सीता पूर्वकी ओर और पश्चिमकी ओर चक्षु धारा बहती है।एक नहीं चार गंगाकी बात भागवत कर रहा , यह बात भी सोचने लायक है ।
 * अलखनंदा निषध , हेमकूट पर्वतों को और हरिवर्ष और किम्पुरुष देशोंको पार करके हिमालय पर पहुंचती है और हिमालयसे भारत में कदम रखती है जिसे हम गंगा कहते हैं उसे भागवत पुराण अलख नंदा कहता है ।गंगाके भूगोलके सन्दर्भमें आप ध्यान कर सकते हैं ।
 * इलाबृतके ठीक उत्तरमें नील पर्वतसे रम्यक वर्षकी सीमा प्रारम्भ होती है ।
 * रम्यकके उतरमें श्वेत पर्वतसे हिरण्मय वर्ष प्रारम्भ होता है और इसके बाद उत्तर कुरुकी सीमा श्रृंगवान पर्वतसे प्रारम्भ होती है । 
°° इलाबृतके दक्षिणमें क्रमशः निषध पर्वत ,हरिवर्ष , हेमकूट पर्वत , किम्पुरुष वर्ष ,हिमालय पर्वत और हिमालयके दक्षिणमें भारतवर्ष है ।
 ** इलाबृतके पूर्वमें है गंध मादन पर्वत और उसके बाद है भाद्राश्व वर्ष ।
 ** इलाबृतके पश्चिममें माल्यवान पर्वत और केतुमाल वर्ष हैं । ^^ यहाँ आप उत्तरी कुरुके सम्बन्धमें सोच सकते हैं ।उत्तर कुरु हिमालयसे पांच देश और छः पर्वतों के आगे उत्तर दिशा में है , यह भूगोल भागवत पुराण का है , फिर उठाइये एटलस या जाइये गूगल मैप पर और समक्गिये की । यह उत्तर कुरु कहाँ हो सकता है ? अगले अंकमें देखते हैं कि अजनाभ खंड भारत वर्ष कैसे 
बना ? 
~~~ ॐ ~~~

Friday, September 20, 2013

ब्रह्माण्डमें जीव निर्माण

●● ब्रह्माका सांख्य ●● 
सन्दर्भ : श्रीमद्भागवत पुराण : 2.5 
 <> ब्रह्मा नारदको सृष्टि रहस्यके सम्बन्धमें बता रहे हैं । भागवत 2.5 में कुल 42 श्लोक हैं जिनको नीचे स्पष्ट किया जा रहा है ।
 * माया तीन गुणोंका एक प्रभु का माध्यम है जिससे एवं जिसमें यह दृश्य प्रधान संसार है। 
* माया पर काल का प्रभाव हुआ और महत्तत्त्व का निर्माण हुआ । महत्तत्व चेतनाका ही दूसरा नाम है ।
 * महत्तत्व पर कालका प्रभाव हुआ और तीन अहंकार उत्पन्न हुए ; सात्त्विक ,राजस और तामस । 
* सात्त्विक अहंकार पर कालका प्रभाव हुआ फलस्वरूप 10इन्द्रियों के देवताओंकी और मन की उत्पत्ति हुयी ।
 * जब राजस गुण पर कालका प्रभाव हुआ तब 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि और प्राण की रचना हुयी ।
 * जब तामस अहंकार काल के प्रभाव में आया तब नीचे दिखाए गए तत्त्वों की उत्पत्ति हुयी ।
 <> 1 <> 
--------[ तामस अहंकार ]--------
                 +
              [ काल ]
                 | से 
  <> आकाश की उत्पत्ति --> शब्द ^
                      | से
 <> वायु की उत्पत्ति --> स्पर्श ^ 
                     | से
 <> तेज की उत्पत्ति --> रूप ^
                    | से
 <> जल की उत्पत्ति --> रस ^ 
                | से
 <> पृथ्वी की उत्पत्ति --> गंध ^
 °°अर्थात °° 
<> पांच महाभूत और उनके अपनें -अपनें बिषय उत्पन्न हुए । <> 02 <>
 -- > जब प्रलय होगी तब क्या होगा ?<--
 ° पृथ्वीसे जल गंध लेलेगा और पृथ्वी जलमें विलीन हो जाएगी । ° काल जलसे रस खीच लेगा और जल तेज ( अग्नि )वायुमें बदल जाएगा । 
° वायुसे काल स्पर्श लेलेगा और वायु आकाशमें लीन हो जायेगी । ° आकाशसे काल शब्द छीन लेगा फलस्वरुप आकाश तामस अहंकारमें बदल जाएगा ।
 * और * 
# राजस अहंकारसे काल बुद्धि , प्राण और इन्द्रियों को लेलेगा । # सात्विक अहंकारसे काल मन और इन्द्रियों के आधिष्ठाता देवताओं को छीन लेगा । 
* और *
 > तब तीन अहंकार महत्तत्त्वमें विलीन हो जाएगा, महत्तत्त्व माया में समाजाएगा और माया ब्रह्ममें लीनहो जाएगी ।
 > पुनः जब सृष्टिका प्रारम्भ होगा तब ब्रह्मके फैलाव स्वरुप सभीं सूचनाएं पूर्ववत प्रकट होनें लगेंगी ।।
 ~~ ॐ ~~        

Thursday, September 12, 2013

कृष्ण और शिव युद्ध

●● श्रीमद्भागवतमें कृष्ण - शिव युद्ध ●● 
सन्दर्भ : भागवत : 10.61- 10.63
 <> कुल 108 श्लोकों का सार <>
 ° कृष्णकी 16108 रानियाँ थी ।
 ° प्रत्येकके 10 - 10 पुत्र थे ।
 ° रुक्मणीसे एक पुत्री भी थी जिसका नाम था चारुमती । 
^ कृष्ण - रुक्मणीसे प्रद्युम्न हुए जिनका ब्याह रुक्मणीके भाई रुक्मी की पुत्री से हुआ । 
^ बालीका पुत्र बाणासुर शोणितपुरका राजा था , उसकी पुत्री ऊषा स्वप्नमें किसी अनजानेको देखा और प्यार हो गया ।
 ^ ऊषाकी एक सहेली थी योगिनी चित्रलेखा जो चित्र बनानेंमें दक्ष थी । चित्रलेखा सहेली की मददके लिए उसनें अनेक लोगोंके चित्र बनाए जिनमें एक चित्र अनिरुद्धका भी था और ऊषा उस चित्रको पहचान गयी जिसे वह स्वप्नमें देखि थी और बोली , सखी ! यह चित्र किसका है ? चित्रलेखा बता दी कि ये कृष्णके पौत्र, द्वारका निवासी प्रद्युम्नके पुत्र हैं ।अपनें सहेली के दिल की बातको समझते हुए चित्रलेखा आकाश मार्गसे द्वारका गयी और अनिरुद्धको लाकर ऊषाके सामने खड़ा कर दिया ।अनिरुद्ध महलमें चार माह रहे और अंतमें बाणासुरको पता चल गया । 
 * बाणासुरके सेनापति शिव थे । यदुबंशी और बाणासुरके मध्य 12-12 अक्षौहिणी सेनाओं के साथ युद्ध हुआ ।इस युद्धमें कृष्ण और शिव आमने - सामने थे । बाणासुरकी हार हुयी और अनिरुद्ध - ऊषा ब्याह हुआ । 
 ~~~ ॐ ~~~

Saturday, September 7, 2013

भागवत स्कन्ध - 10 की एक कथा

●● भागवत स्कन्ध - 10 से ●● 
^^ सन्दर्भ - भागवत : 10.46 + 10.82-10.84 तक ^^ ° कंश बधके समय नन्द -यशोदा और अन्य गोप -गोपियाँ मथुराके बाहर किसी बाग़में रुके हुए थे , उनको क्या पता कि यहाँ कंश -बध होनें वाला है , वे तो धनुषयज्ञ देखनें आये थे ,अपनें कान्हा के प्यारमें । खेल -खेलमें जब कंश का अंत हुआ तब उसके 08 भाई कान्हा एवं बलराम पर आक्रमण कर दिये और बलराम द्वारा मारे गए ।
 ° जब मथुरामें कान्हाका खेल समाप्त हुआ तब कान्हा पहुँचे माँ यशोदाके पास और बोले , मैया ! भूख लगी है , फिर क्या
 था ,कान्हाकी आवाज में सम्मोहन शक्ति प्रवल थी ,माँ सम्मोहित हो गयी और जो सोच रही थी ,उनके दिमाक से वह सोच निकल गयी और तुरंत दूध और चावलसे तैयार खीर ला कर दोनों भाइयोंको खिलाया ।
 ° कान्हा माँ यशोदाकी गोदी में बैठ कर बोले ,माँ अब आप लोग गाँव वापिस चले जाओ मेरा यहाँ कुछ काम बाकी है ,उसे पूरा करके आउंगा , नन्द और उनके साथी सभीं नन्द गाँव वापिस चले गए । यह कथा है जब माँ यशोदा की उम्र लगभग 35-40 साल की रही होगी और कान्हा 11 सालके थे ।
 ° कान्हा फिर नन्द गाँव नहीं गए ,वे गए उज्जैन सान्दीपनि 
मुनि ,उज्जैनके आश्रम ,जहां 64 दिनमें तीन वेदों और शास्त्रोंका अध्यन पूरा किया ।
 ° कान्हा स्वयं नन्द गाँव न जा कर उद्धवको भेजा , उद्धव देखनें में कान्हा जैसे ही दिखते थे और जब 05 साल के थे तब कान्हा की मिटटी की प्रतिमाएं बनाया कराये थे और उन प्रतिमाओं को पूजते थे । सम्पूर्ण ब्रजमें हवा फ़ैल गयी कि कान्हा मथुरासे आये हैं ,फिर क्या था ,सारा ब्रज ; गोप और गोपियाँ अपनें - अपनें कान्हासे मिलनें नन्द बाबा के घर भागे चले आये , सभीं एक बात कह रहे थे , मेरा कान्हा कहा है , मेरा कान्हा कहाँ हैं,इतना गहरा प्यार ? फिर एक गोपिका नन्दके घर के अन्दर गयी ,कान्हा को देखनें और अन्य सभीं घरके बाहर ही खड़े रहे । वहाँ एक मायूशीके अलावा और क्या था । सारे गोप और गोपियाँ निर्जीवसे अपनें अपनें घरको चल दिए जबकि उद्धव उनको कान्हाका सन्देश देना चाहते थे ।
 ** तब और अब : तब कान्हा 11 सालके बच्चे थे और आज वहीँ कान्हा कुरुक्षेत्र में पधारे हैं जिनका पौत्र भी ब्याहा जा चुका है ।अब आप गहराई से इस दृश्य को अपनें दिलमें उतारें , तब और अबमें क्या अंतर हुआ होगा ?
 ** सर्वग्रास सूर्य ग्रहण सर्व ग्रास अर्थात प्रकृति - प्रलय ऐसी परिस्थितिका पैदा होना । यह घटना महाभारत युद्धसे पहले की
 है । सारा ब्रज , नन्द -यशोदा ,गोप और गोपियोंका काफिला कुरुक्षेत्र पहुंचा । नन्द गाँवसे कुरुक्षेत्र लगभग 300 किलो मीटर की यात्रा में सभी ब्रज बासियों की आँखों में बाल कान्हा बसे रहे । ** ज्योंही कान्हासे कृष्ण बनें कान्हा माँ को देखा दूर से भागते हुए आये और माँ की उंगली पकड़ कर अपनें कैम्प में ले आये । यशोदा उन दिनों में खोयी रही जब कान्हा की उंगलियाँ पकड़ कर उनको चलाती थी और आज कान्हा उनको चला रहे हैं क्योंकी आज की यशोदा तब की यशोदासे लगभग 50 सालसे भी अधिक बड़ी है और वह कान्हा आज परदादा बन चुका है ।
 <> तीन माह कुरुक्षेत्रमें यशोदा अपनें कान्हा के संग रही , इस मिलनका कारण था सर्व ग्रास सूर्य ग्रहण और यह यशोदा - कान्हा मिलन आखिरी मिलन रहा ।
 ● भारतसे कृष्ण भक्ति सारे विश्वमें फ़ैल गयी , कृष्ण भक्तिके नाम पर राधाका नाम ही एक मात्र नाम है , लोग राधे - राधेका जाप करते हैं लेकिन किसी जो यशोदाका दृदय न मिल सका और जिसे यशोदाका हृदय मिला होगा वह मौन हो गया होगा ।यशोदाके दिल की झांकी दिखानेंके लिए हमारे पास कुछ नहीं है मात्र जो है वह मेरे मौन के परदे पर टपकते मेरे आँसू हैं ।
 ~~~ ॐ ~~~

Thursday, September 5, 2013

श्रीमद्भागवतकी एक और झलक

●● यदु , रघु , कुरु और पुरु कुल ●● 
सन्दर्भ : भागवत स्कन्ध - 9
 * एक बात : इतनी सी बात आप अपनें स्मृतिमें रखे रहें कि ---° यदु कुलमें प्रभु श्री कृष्णका जन्म हुआ 
 ° रघु कुलमें प्रभु श्री रामका जन्म हुआ 
 <> अब आगे :----- 
1- ब्रह्मासे अत्रि ऋषि हुए , अत्रिसे चन्द्रमा , चन्द्रमा बृहस्पतिकी पत्नी को चुरा लिया और बुध का जन्म हुआ । 
2-ब्रह्मा से कश्यप ऋषि , कश्यपसे विवस्वान् ( सूर्य ) , सूर्यसे श्राद्धदेव मनु और मनुके पुत्र सद्युम्न हुए जो शिव श्रापसे एक माह स्त्री होते थे तो एक माह पुरुष । स्त्री रूपमें इनको इला नाम से लोग जानते थे । इला और बुधसे पुरुरवा पैदा हुए । चन्द्र बंशी क्षत्री बुध - इलाके बंसज हुए और श्राद्ध देव मनुके अन्य 10 पुत्रों ( इक्ष्वाकु एवं अन्य ) से सूर्य बंशी क्षत्रियों का बंश प्रारम्भ हुआ ।
 3- पुरुरवा और उर्बशी का मिलन सरस्वती नदीके तट पर कुरुक्षेत्रमें हुआ और पुरुरावाके पुत्र ययातिकी दो पत्नियाँ थी । 3.1- एक थी देवयानी , शुक्राचार्यकी पुत्री और
 3.2- दूसरी थी दैत्यराज बृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठा ।
 4- देवयानीसे यदु हुए और शर्मिष्ठासे आगे चल कर मन्धाताकी पुत्री बंशमें रघु का जन्म हुआ ।
 5- रघु कुल में श्री रामके पुत्र कुश बंशमें तक्षक पैदा हुआ जो परीक्षितके मौतका कारण बना ।
 6 - शर्मिष्ठाके तीन पुत्रोंमें एक पुत्र थे पुरु । पुरुबंश में भरत हुए जो 27000 वर्ष राज्य किया और इस बंशमें हस्ती हुए जो हस्तिनापुर को बसाया ।हस्ती बंशमें कुरु हुए जो कुरुक्षेत्रको बसाया ।
 7- जयद्रत भी इसी कुल का था ।
 8 - कुरु कुलमें जरासंधका जन्म हुआ था ।
 9 - शंतनु भी इस कुलके थे और इनके कुल में धृतराष्ट्र एवं पांडुका जन्म हुआ ।
 <> यदु , पुरु , कुरु और रघु का इतिहासका सार श्रीमद्भागवत पुराणके आधार पर , यहाँ आपको दिया गया । भागवत की कथा इन कुलोंपर आश्रित है ।
 ~~~ ॐ ~~~

Wednesday, September 4, 2013

भागवतकी एक झलक

●● एक झलक ●●
श्रीमद्भागवत से कुछ बातें आपके सामनें हैं , इनको देखें और अपनें मूल को पहचानें ।
1- श्राद्ध देव मनु को 10 पुत्र थे जिनमें इक्ष्वाकु सबसे बड़े थे ।
2- इक्ष्वाकु के 100 पुत्रोंमें विकृत बड़े थे ।
3- इक्ष्वाकु बंश में 18वें राजा को  कोई पुत्र न हुआ , उनकी पुत्रीसे मान्धाता पैदा हुए ।
4- आगे इक्ष्वाकु कुल पुत्रीके कुलसे चला ।
5- इक्ष्वाकु कुलके 27वें राजा हरिश्चंद हुए ।
6- सगर इस कुलके 36वें राजा थे ।
7- भागीरथ 40वें राजा हुए ।
8- 56वें राजा रघु थे और दशरथ 58वाँ सम्राट थे । 9- इस बंश में 86 वां बंसज था तक्षक ।
10- तक्षक परीक्षितको डसा था ।
11- इस बंशका आखिरी बंसज सूरत 110वाँ बंसज होगा फिर सूर्य बंशका अंत हो जाएगा ।
12- इस बंशका 79 वाँ है मरू जो सिद्ध योगीके रूप में आज भी कलाप नामक गाँव में अदृश्य रूपसे है और सूर्य बंशके अंत होने पर इस बंशको पुनः चलाएंगे।
~~~ ॐ ~~~