Wednesday, April 18, 2012

गरुण पुराण अध्याय सात भाग दो

गरुण पुराण अध्याय सात में श्री गरुण जी भगवान विष्णु से उन उपायों को जानना चाहते हैं जिनसे यातो नरक जानें से बचा जा सके या फिर प्रेत योनि जिनको मिली हुयी है उनको वहाँ से उद्धार कैसे किया जा सकता है/भगवान इस सम्बन्ध में श्री गरुण जी को एक कथा सुना रहे हैं जो कुछ इस प्रकार से है ….......

कथा

एक राजा शिकार खेलनें हेतु जंगल में पहुंचे और कुछ समय के लिए एक जलाशय के नजदीक एक सघन बृक्ष के नीचे लेते हुए थे और देखा की एक प्रेत उनकी ओर आ रहा है / प्रेत राजा का अभिवादन किया और राजा से प्रार्थना किया कि वे उसे प्रेत योनि से मुक्त कराएं / प्रेत कहता है , हे राजन ! मैं इसी आर्यवर्त देश के वैदेश नगर का निवासी था / सी धार्मिक नगर में मेरा निवास था और वैश्य कुल में मेरा जन्म हुआ था / मेरे लाख युक्ति के बाद भी मेरे घर पुत्र न जन्म ले सका और पुत्र बिहीन स्थिति में मेरा अंत आ आया और मुझे प्रेत की योनि मिली / मैं सुना हूँ कि वह जिसकी षोड्श मासिक श्राद्ध न की गयी हो वह प्रेत योनि में पहुँचता है और यह श्राद्ध मात्र पुत्र कर सकता है / हे राजन ! आप कृपया और्ध्व दैहिक क्रिया करके मेरा उद्धार करो क्योंकि राजा प्रजा का यह क्रिया कर सकता है / आप यदि मुझे प्रेत योनि से मुक्त करवाते हैं तो मैं आप को मणि रत्न दूंगा /

प्रेत कहता है , हे राजन ! अब मैं आप को नारायण बलि [ विष्णु पूजा ] की विधी को बताता हूँ /

पूजन सामग्री

32 माशे स्वर्ण की नारायण की एक प्रतिमा

दो पीले वस्त्र इस प्रतिमा के लिए

सप्त तीर्थों का जल

श्रीधर , मधुसूदन , वामदेव , गदाधर , ब्रह्मा , महेश्वर , गंध , पुष्प , घी , दूध , दही , हल्दी , कुश , नैवेद्य , पंचामृत , सरकरा , कच्चा सूत , आम की सूखी लकडी , तिल , जौ , चावल , शहद , गाय का गोबर और अन्य पूजन सामग्रियां

सप्त तीर्थ क्या हैं?

गरुण पुराण अध्याय – 16 में सप्त तीर्थ के रूप में निम्न का नाम है -----

अयोध्या,मथुरा,हरिद्वार,काशी,कांची,उज्जैन,द्वारिका

वेदों में सप्त सिंधु , सप्त ऋषि , सप्त अन्न , सप्त तीर्थ और सात दिन का अपना रहस्य है , आखिर वेदिक लोगों को सात और नौ संख्याओं से इतना गहरा लगाव क्यों था ?

शेष अगले अंक में-----

==== ओम्======


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