Friday, April 13, 2012

गरुण पुराण अध्याय छः का आखिरी भाग

गरुण पुराण अध्याय – 06 भाग एक में हमनें देखा कि गर्भ में जीव के आनें की प्रक्रिया को और गर्भ में जीव को भूख प्यास पांचवें माह से प्रारम्भ हो जाती है / भाग दो में हमनें देखा कि गर्भ में जीव को सातवें माह में ज्ञान होता है और गर्भ में मिल रहे दुखों की संवेदनाएं उसे प्रभु की स्मृति में पहुंचानें लगती हैं और वह जिव सातवें माह से पैदा होनें तक प्रभु - प्रार्थना में रहता है , गर्भ से मुक्त होनें के लिए और अब आगे अध्याय – 06 का तीसरा भाग ----------

भाग –03

शिशु अवस्था में पराधीन स्थिति में वह जीव अवाक स्थिति में दुःख भोगता रहता है और जब रोता है तब माँ उसकी वेदना को समझनें का प्रयाश करती है और दूध या औषधि उसे पिलाती रहती है /

पांच साल की अवस्था पार कर के वह जिस अवस्था में पहुँचता है उसे पोगंड कहते हैं / यहाँ से अध्ययन प्रारम्भ होता है / धीरे - धीरे वह आसुरी संपत्ति प्राप्त करानें वाली यौवन अवस्था में

पहुँचता है जहाँ वह बिषय एवं इंद्रियों का गुलाम बन कर रहता है और काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय , मोह एवं अहँकार के इशारों पर अपनें तन , मन एवं बुद्धि को चलाता रहता है / यही जीव जब गर्भ में था तब सातवें माह से जन्म लेनें तक प्रभु को अपने स्मृति में रखे हुआ था और जब युवा अवस्था में पहुँचता है तब उसकी पीठ स्वतः प्रभु की ओर हो जाती है और भोग पर उसका तन , मन एवं बुद्धि टिक जाती है /

जीव भोग को भगवान समझ कर जीनें वाला प्रभु निर्मित तीन गुणों कि माया में उलझा आसुरी स्वभाव में पड़ा धीरे - धीरे मौत की ओर सरकता हुआ आगे चलता रहता है और पिछली मौत से लेकर वैतरणी नदी में पाए गए कष्टों को तथा नरक में जो दुःख झेले हुए था उन सबको वह भूल जाता है और यह समझनें लगता है की वह अमर है और अन्य सभी नाशवान हैं / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं [ श्लोक – 16.21 ] , काम , क्रोध एवं लोभ नरक के द्वार हैं और भोग में उलझा जीव इन द्वारों के चौखटों के सहारे नरक में पुनः पहुंचता है / गीता कहता है [ श्लोक – 2.62 – 2,63 ] मन में बिषयों के प्रति उठा मनन आसक्ति को पैदा करता है , आसक्ति से कामना - संकल्प का जन्म होता है , कामना टूटनें की उम्मीद कमाना ऊर्जा को क्रोध में बदल देती है और क्रोध पतन का कारण होता है //

गरुण पुराण अध्याय –06यहाँ समाप्त होता है//

=====ओम्======


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