Tuesday, July 26, 2011

गीता के दो सौ सूत्र भाग सात

गीता के दो सौ सूत्रों की यह माला आप कुछ दिनों से देख रहे हैं अब आगे की कुछ मणियों को हम देखनें जा रहे हैं ----------

गीता सूत्र – 8.15

ब्रह्म की अनुभूति जिनको प्राप्त है वे आवागम से मुक्त होते हैं //

गीता सूत्र – 6.5

नियोजित मन वाला स्वयं का मित्र होता है //

गीता सूत्र – 18.54 , 18.55

कामना रहित सम भाव योगी परा भक्त होता है //

परा भक्त प्रभु को तत्त्व से समझता है //

गीता सूत्र –2.64 , 2.65

राग – द्वेष से अछूता ब्यक्ति परम आनंदित परम सत्य में बसता है //

गीता सूत्र –15.9

पांच ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से जीवात्मा संसार से जुड़ता है //

गीता सूत्र –2.14

इन्द्रिय सुख – दुःख क्षणिक होते हैं , ग्यानी इस बात को समझ कर इन से प्रभावित

नहीं होते //

गीता सूत्र –18.38

प्रारम्भित अवस्था में इन्द्रिय सुख में अमृत दिखता है लेकिन इस अमृत में बिष का बीज होता है //


गीता के कुछ मूल मन्त्रों को मैं जिस ढंग से आप को दे सकता था दे दिया अब आप इनका जैसा रस चाहें वैसा निकालें//

गीता सभीं मनोरोगों की औषधि है और आज विश्व मनोरोग से ग्रसित है//


====ओम======


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