Thursday, July 14, 2011

गीता के दो सौ सूत्र भाग चार

पंचा का गुरू एक धिआनु

आदि गुरू श्री नानकजी साहिब का वचन------

सिख धर्म के आदि गुरू श्री नानकजी साहिब को माना जाता है/श्री नानकजी साहिब का भौतिक जीवन सन1469से1559के मध्य समझा जाता है लेकिन इनका आध्यात्मिक जीवन सन1500 ADसे प्रारम्भ होता है जब इनको ज्ञान की प्राप्ति हुयी/आखिरी गुरू श्री गोविंदजीसाहिब[ 1666 – 1708 ]आदि ग्रन्थ साहिब को अपनें बाद का गुरू घोषित किया था,उनकी सोच थी कि मेरे बाद कोई मनुष्य रूप में सिख धर्म का गुरू नहीं हो सकता श्री ग्रन्थ साहिब जिसमें एनेक सिद्धि प्राप्त योगियों की बाणियां संगृहीत हैं वह इस धर्म का मार्ग दर्शन कराएगा/

सन1500 ADसे आजतक सिख धर्म का केंद्र है गुरू शब्द जिसके सम्बन्ध में आदि गुरू कहते हैं---

पंचा का गुरू एक धियानु …..

आदि गुरु नानकजी साहिब कह रहे हैं,सत के खोजी का गुरु है,ध्यानऔर कोई नहीं,बहुत गहरी बात आदि गुरु कह रहे हैं/गीता श्लोक13.25मेंश्री कृष्ण कहते हैं …...

ध्यानेन आत्मनि पश्यतेअर्थात ध्यान के माध्यम से ध्यानी प्रभु को अपने ह्रदय में देखता है/

गीता श्लोक –6.15कहता है,ध्यान निर्वाण का मार्ग है जहाँ सत् का बोध होता है/

गीता श्लोक –4.38बताता है,ध्यान – योग सिद्धि पर ज्ञान मिलता है औरगीता श्लोक13.3कहता है,क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है और …...

आदि गुरू कह रहे हैं,पंचा का गुरु एकु धियानु,अब आप गुरु के परम पवित्र बचन के बारे में आप सोचें कि ऐसा बचन जो गीता का सार हो एवं वेदांत हो,को बोलनें वाला कौन हो सकता है?

ऐसे बचन वहीं बोलते हैं जिनको सत् की अनुभूति होती है जिनकी चेतना में परम सत् उतरा होता है/

गीता में प्रभु कहते हैं …...

ब्रह्म की अनुभूति मन – बुद्धि से परे की होती है और ध्यान मन – बुद्धि से परे की यात्रा का नाम है/

आदि गुरु नानकजी साहिब ध्यान को ही गुरु बता रहे हैं और कबीरजी साहिब गुरु उसे कहते हैं जो हरी दर्शन कराये/

आगे आप को सोचना है और इस बिषय को अपनें ध्यान का माध्यम बनना है//


=====ओम======


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