पिछले अंक में देखा गया , प्रभुसे जो लोग जुड़े दिखते हैं उनकी कितनी श्रेणियाँ हो सकती हैं और अब इस श्रृखला में हम देखनें जा रहे हैं कुछ और गीता के सूत्रों को जो बताते हैं -------
मन एक ऐसा माध्यम है जिस से दो मार्ग निकलते हैं ; एक योग में पहुँचता है और एक भोग में पहुँच कर कहीं लुप्त हो जाता है / गीता कहता है , भोग की बुद्धि अलग और योग की बुद्धि अलग होती है , इसका यह अर्थ नहीं की भौतिक रूप में बुद्धि दो प्रकार की है , बुद्धि तो एक ही है , जब इस पर भोग तत्त्वों का प्रभाव होता है तब यह भोग बुद्धि होती है और जब यह प्रभु से जुड़ती है तब यह योग – बुद्धि होती है /
अब आगे -------
गीता सूत्र – 5.20
स्थिर प्रज्ञ ब्रह्म में स्थिर होता है//
गीता सूत्र – 6.31
कर्म का योग में बदलना ही कर्म संन्यास है//
गीता सूत्र – 6.7
शांत मन में समभाव बसता है//
गीता सूत्र – 8.8
मन को प्रभु में बसाना प्रभु को पाना है//
गीता सूत्र – 15.8
आत्मा जब देह छोड़ता है तब उसके साथ मन – इन्द्रियाँ भी होते हैं//
गीता सूत्र – 12.6 – 12.9 तक
तन मन एवं बुद्धि से जो मुझसे जुड़े हैं वे आवागमन से मुक्त होते हैं//
गीता सूत्र – 8.14
शांत मन में प्रभु का बसेरा होता है//
गीता को अपना मित्र बनाना ही प्रभु मय होना है-----
गुणों में होता परिवर्तन यातो नर्क की ओर ले जाता है या प्रभु में पहुंचाता है//
प्रभु खोज का बिषय नहीं,प्रभु तो सर्वत्र है,उसे पहचाननें की आँखें होनी चाहिए//
=====ओम=======
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