Wednesday, July 6, 2011

गीता के दो सौ सूत्र [दो]


पिछले अंक में हमनें देखा,ज्ञानी समभाव होता है और अब आगे …....


गीता सूत्र5.19


समभाव में स्थिति योगी ब्रह्म स्तर का होता है


गीता सूत्र4.22 – 4.23


समभाव पर गुण तत्त्वों का प्रभाव नहीं रहता और वह कर्मों का गुलाम नहीं बनता


गीता सूत्र2.15


समभाव योगी मुक्ति पता है


गीता सूत्र4.34 – 4.36


समदर्शी गुर ु का ज्ञान सत् का द्रष्टा बनाता है


गीता सूत्र4.25 , 18.72 , 18.73


ज्ञान से अज्ञान जनित मोह समाप्त होता है


गीता सूत्र5.16


ज्ञान से बोध होता है


गीता सूत्र4.37


जैसे अग्नि मे इंधन भष्म हो जाता है वैसे ज्ञान में कर्म की सोच भष्म हो जाती है


गीता सूत्र6.8


नियोजित इन्द्रियों वाला समभाव में स्थित योगी ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण होता है




गीता के कुछ सूत्रों आप को दिए जा रहे हैं हो सकता है ये सूत्र आप को किसी समय उस मार्ग पर प्रकाश की किरण डाल सकें जो राह अँधेरे से भरी हो//


आप कभी एकांत में बैठ कर सोचना-------


आखिर यह संसार हमें क्या देता है और हम इसको क्या दे रहे हैं? ,जिस दिन,जिस पल इस प्रश्न का उत्तर आप के ह्रदय में एक लहर पैदा करेगा उस दिन आप को गीता के इन सूत्रों में निर्मल गंगा मिलेंगी जो सीधे आप को गंगा सागर पहुंचा कर आप के साथ स्वयं भी सागर में मिल कर सागर बना देंगी//




=====ओम=======


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