Sunday, May 1, 2011

गीता के दो सौ सूत्र

अगला सूत्र …...

गीता सूत्र –13 . 3

क्षेत्रज्ञं च अपि मां विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत /

क्षेत्र क्षेत्र – ज्ञयो : ज्ञानं यत् तत् ज्ञानं मतं मम //


प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --------

क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध जो कराये वह ज्ञान है //

Lord Krishna says …....

The awareness of body and the operator of the body – the Soul , is knowledge .

Here this knowledge means the purest form of knowledge known as wisdom .


आदि गुरू शंकराचार्य , माधवाचार्य से ले कर सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक एक नहीं अनेक

दर्शन से जुड़े लोगों नें गीता के इस सूत्र का ठीक ऐसा ही अनुबाद किया है जैसा ऊपर बताया गया /

सब नें ज्ञान की परिभाषा यही दिया है की क्षेत्र – क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है लेकिन कहीं किसी नें

इस परिभाषा के आधार पर गीता में जहां - जहां भी ज्ञान शब्द आया है उसको इस परिभाषा

से नहीं देखा , सब किताबी ज्ञान को ज्ञान कहा है अर्थात वह जो शास्त्रों या ग्रंथों से मिलता है /


प्रो.आइन्स्टाइन कहते हैं--------

जब मैं गीता में ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में पढता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है की गीता से और उत्तम

ब्रह्माण्ड रचना के सम्बन्ध में कहीं और नहीं होंगी/

आइन्स्टाइन आगे कहते हैं ….....

ग्रंथों से जो ज्ञान मिलता है वह मुर्दा ज्ञान होता है लेकिन वह जो चेतना से टपक कर बुद्धि में

आता है,वह ज्ञान सजीव – ज्ञान होता है//

आप जब कभी गीता उठायें और गीता में ज्ञान शब्द को देखें तो ज्ञान की यह

परिभाषा ही अपनें अंदर रखें//


===== ओम ========




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