Thursday, May 5, 2011

गीता के दो सौ सूत्र


अगला सूत्र –18 . 49

असक्त – बुद्धि:सर्वत्र जितात्मा विगत – स्पृह: /

नैष्कर्म – सिद्धिम् परमां संयासेन अधिगच्छति//

आसक्ति रहित कर्म,कर्म – योग की सिद्धि है/


action without attachment is the symptom of the perfection of the Karma – Yoga .

यहाँ गीता मे प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को क्या कह रहे है?इस बात को आप बाद में सोचना,यहाँ अब इस श्लोक को भी देख लो-------

कर्मणि एव अधिकार;ते

मा फलेषु कदाचन/

मा कर्मफल हेतु:भू:मा

ते संग:अस्तु अकर्मणि//

गीता सूत्र –2.47

कर्म करना सब का अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन कर्म – फल की चाह किसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता/अतः तुम अपनें कर्म का कारण समझो और बिना फल – कामना अपनें कर्म को करो/

इस सूत्र का आधा भाग भोगियों को भा गया[कर्म करना मेरा अधिकार है]और रात – दिन

लग गए भोग कर्म में,संसार का नंबर एक ब्यक्ति बननें के इरादे से/आप देखते हैं मनुष्य की चालाकी को?

फल की कामना कर्म में न आनें पाए,इसकी साधना के लिए प्रभु कर्म को माध्यम बना रहे हैं लेकिन हम लोग कर्म – फल की सोच के बिना एक कदम भी आगे नही रखते और कहते हैं …...

भाई,क्या करें गीता कहता है,कर्म करो और मैं गीता का भक्त हूँ/

संत पुरुष,बुद्ध लोग,साकार रूप में अवतरित हुए प्रभु चाहे जो कहते हों लेकिन उनकी

बातें हमें प्रिय लगती हैं क्यों?

क्योकि उनकी बातों का अर्थ तो हमारा ही होता है//

बुद्ध पुरुष हमारी भक्ति से खुश और हम अपनें स्वार्थ की बात सुन कर खुश,सभी खुश हैं

लेकिन हमारी खुशी दुःख के बीज रूप में होती है और बुद्ध पुरुष खुशी के आलावा और कुछ समझता ही नहीं//


======ओम======



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