Wednesday, May 11, 2011

गीता के दो सौ श्लोक

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गीता श्लोक18 . 50

सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथा आप्नोति निबोध मे /

समासेन एव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा //


नैष्कर्म की सिद्धि ज्ञान योग कि परा निष्ठा है जिसमे ब्रह्म की अनुभूति होती है //

Here The Lord Krishna says …. .....


The perfection of Action – Yoga called naishkarma – siddhi takes into the space of wisdom .

Wisdom is an energy field in mind – intelligence network where realization of the

Supreme Brahman takes place .

इस श्लोक के पहले हमनें पिछले अंक में देखा था गीता सूत्र 18 . 49 जिस में

प्रभु कहते हैं …...

आसक्ति - कामना रहित कर्म नैष्कर्म्य योग की सिद्धि है और यहाँ कह रहे हैं ------

नैष्कर्म्य योग कि सिद्धि ज्ञान योग कि परा निष्ठा है //

परा निष्ठा क्या है ?

परा एक मन – बुद्धि कि स्थिति होती है और यह स्थिति तब आती है जब ….

तन , मन एवं बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा बह रही होती है //

तन , मन एवं बुद्धि में निर्विकार ऊर्जा तब बहती है जब उस ब्यक्ति को …..

सम्पूर्ण ब्रहमांड ब्रह्म के फैलाव स्वरुप दिखनें लगता है //


==== ओम ======


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