Saturday, May 14, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगला सूत्र

न कर्मणां अनारम्भात् नैष्कर्म्यम् पुरुषः अश्नुते/

न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति//

गीता- 3.4

गीता कह रहा है …...

कर्म को त्याग देनें से नैष्कर्म्यसिद्धि नहीं मिल सकती//

Here Gita says …...

By stopping doing work one can not achieve the perfection of Karma – Yoga .

Naishkarmya is the state where one is not affected by the result of the work .

According to law of Physics......

Every action has equal and opposite reaction and so one is suppose to be affected by

his action but Gita,s Karma – Yoga gives the Physics which is not the subject of

intelligence but it is the realization through consciousness .

गीता-गणित जो कर्म – योग से सम्बंधित है उसका एक भाग हमनें पीछले कुछ

सूत्रों के माध्यम से देखा जिनका सर यहाँ पुनः दिया जा रहा है/

गीता कहता है-----

कोई एक पल के लिए भी कर्म रहित नहीं रह सकता क्यों कि कर्म मनुष्य नहीं करता,कर्म

मनुष्य के अंदर स्थित गुण समीकरण करता है/कुछ लोग कर्म – त्याग करके

योग में उतरना चाहते हैं और यह उचित नहीं क्योंकि योग की सिद्धि,

मन – बुद्धि के अंदर उपजी नैष्कर्म की स्थिति है जो बिना कर्म किये कैसे मिल सकती है?

कर्म में कर्मों की पकड़ को समझना,कर्म – योग है और कर्म – तत्त्वों की समझ ही

नैष्कर्म की स्थिति में पहुंचाता है//


====ओम=====


No comments:

Post a Comment