Thursday, May 19, 2011

गीता के दो सौ ध्यान सूत्र

अगले सूत्र

[]गीता सूत्र –3.8

[]गीता सूत्र –18.48


सूत्र –3.8

प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं-----

अपनें नियत कर्मों को करो ; कर्म न करनें से कर्म करना उत्तम है //


सूत्र –18.48

यहाँ प्रभु कह रहे हैं----

कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष रहित हो लेकिन सहज कर्मों को करते रहना चाहिए //


गीता के इन दो सूत्रों को आप अपना बना लो और केवल एक बात पर अपनी उजा केंद्रित रखो /

वह बात क्या है ?

केवल उन कर्मों को करो जो … ..

[ ] नियत कर्म हों

[ ] सहज कर्म हों


नियत कर्म उन कर्मों को कहते हैं जिनके न करनें से प्रकृति में बने रहना कठीन हो जाए

और नियत कर्मों में सहज कर्मों की परख होनी चाहिए;सहज कर्म उन कर्मों को कहते हैं

जिसके होनें में किसी अन्य जीब के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ता हो//


जीवन के लिए क्या करना जरूरी है ? और उनमें किस के करनें में किसी अन्य जीवधारी का

जीवन जोखिम में न पड़ता हो , बश इन दो बातों को अपनें साथ रख कर आगे चलते रहिये /


बहुत कठिन काम है;कौन ऐसा करेगा और जो करेगा वह …..

प्रभु समान ही होगा लेकिन ….

ऐसे कर्म – योगी दुर्लभ होते हैं जिनको ….

बुद्ध कहते हैं//


==== ओम ======


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