Thursday, May 26, 2011

गीता के200ध्यान – सूत्र


अगले सूत्र

3.33 , 18.59 , 18.60 , 3.8 , 18.19

गीता के पांच सूत्र क्या कह रहे हैं?


सूत्र – 3.33 , 18.59 , 18.60

प्रभु इन सूत्रों के माध्य से अर्जुन को बता रहे हैं कि … ....

अर्जुन!

तीन गुण मनुष्य के स्वभाव का निर्माण करते हैं और स्वभाव कर्म – ऊर्जा का श्रोत है /

Here Lord Krishna says …....

Three natural modes form the nature of human being and man does the work according to

his nature . In fact man is not the doer work is done by the energy of modes .

सूत्र – 3.8 , 18.19

प्रभु यहाँ इन सूत्रों के माध्यम से कह रहे हैं-------

नियत कर्मों का त्याग करना उचित नहीं/नियत कर्म ऐसे कर्म हैं जो प्रकृति की जरूरतों को

पूरा करते हों और जिनके करनें में कोई संकल्प – विकल्प न हो/

दूसरी बात यहाँ प्रभु कह रहे हैं------

ज्ञान,कर्म और कर्म – कर्ता गुणों के आधार पर भौतिक रूप में तीन – तीन प्रकार के होते हैं/

Here Lord Krishna says …...

Renunciation of the most vital actions which are the basic requirement of the nature is not

the right way , one must do such basic actions but there should not be attachment , desire , ego

and anger behind the performance of actions .


गीता को कम से कम शब्दों में ब्यक्त करना गीता के सूत्रों की मौलिकता को अधिक खराब नहीं करता

अतः मेरा प्रयास यह है की गीता के सूत्रों के मर्म को आप समझ कर स्वयं की ऊर्जा उन पर लगाएं/

मैं अपनें शब्दों में आप को बाधना नहीं चाहता आखिर आपमें वही प्रभु बसा है जो मेरे में है,

आप हो सकता है मुझसे कुछ अधिक समझ रखते हों//


=====ओम======



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