Saturday, January 1, 2011

परम क्या है ?



हम सब में सभीं यही सोचते हैं ------
हमारी सोच परम है ....
लेकीन यदि ऎसी बात है ....
तो फिर
हम स्वयं अपनें किये पर क्यों आशू बहाते हैं ?

बिश्वीं शताब्दी के प्रारम्भ में -----
आइन्स्टाइन के बिरोध में हिटलर लगभग सौ वैज्ञानिकों को खडा कर दिया था
और ....
आइन्स्टाइन जो भी कहते थे उनका मूल गणित तो बाद में बनता था
लेकीन उसके बिरोध का गणित
सर्वत्र उपलब्ध हो जाता था ,
पर आज .....
कौन उन बिरोधियों को जानता है ?

आज बैज्ञानिक जगत में इस बात पर चर्चा चल रही है की -------
आइन्स्टाइन एक ......
वैज्ञानिक थे , या फिर ....
ऋषि थे ॥
जब लोगोंनें आइन्स्टाइन को उनके बिरोध में खड़े लोगों के सम्बन्ध में बताया तब
उनका कहना था ....
यदि मैं गलत हूँ ----
तो फिर इतनें लोगों की क्या जरुरत है .....
एक ही काफी होगा , क्योंकि .....
गलत का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता ......

अब आप सोचिये की ----
ऎसी बात जो करता है वह वैज्ञानिक होता है
या फिर ऋषि ?

गीता - 2.16 कहता है ----

नासतो विद्यते भावो
नाभावो विद्यते सत :
अर्थात ....
सत को खोजनें की जरुरत नहीं , वह सर्वत्र है ही ....
और असत का तो अपना कोई अस्तित्व होता ही नहीं ,
फिर चिंता क्या करना ॥

अब आप सोचिये की ....
आइन्स्टाइन की बात और गीता - ज्ञान में क्या ....
कोई फर्क भी है ?
आइन्स्टाइन को ब्रह्माण्ड के नक़्शे को दिखानें वाला -
श्रीमद्भागवद्गीता ही था .....
क्या आप जानते हैं ,
नहीं तो देखिये , यहाँ ,
आइन्स्टाइन क्या कह रहे हैं .........
When i read Bhagvadgita
i reflect upon how God created this universe ,
everything
else seems superfluous in this regards .
Einstein feels :
Gita has the mystery of the origin and the end of this ......
UNIVERSE ....
which is limited in
four coordinated structure called ....
TIME - SPACE
enjoy Gita ....
and ...
thus ...
enjoy yourself being ...
embodied one

==== om ======

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