Friday, December 31, 2010

इतनी छोटी यात्रा , और ----

इतनें मोड़

बश इतना ही सोच पाया था की स्वयं को संभालना कठिन हो गया और ......
भागता हुआ मैं उस गाँव के बाहर स्थित एक बिरान स्थान पर पहुँच कर .....
खूब रोया , वहां कौन सुननें वाला था , क्या करता , अपनें बश में कुछ न था , उस घड़ी ॥

लगभग अब अन्धेरा हो चला था , उठा और उस जगह को देखनें लगा
इतनें में पीछे से कोई आया और पूछा - भाई साहब !
आप इस बस्ती में पहली बार दिखे हो , नए लग रहे हो , किसके यहाँ आये हो , क्या पंडित जी
के करम पर तो नहीं आये ? इतनें सारे प्रश्न और मैं , क्या करता बोला तो जा नहीं रहा था लेकीन
अपनें को संभाल कर बोलना ही पडा - मैं बोला, आप ठीक कह रहे हो ॥
उस ब्यक्ति की बातों में दम था , वह ब्यक्ति था भी ऐसा ॥
पंडितजी को मरे आज ठीक बारह दिन हो चुके थे
और आज कर्म - काण्ड का आखिरी दिन है , इतनें लोग आये हैं ?

मैं पंडितजी को बचपन से जानता हूँ , बहुत ही नेक दिल इंसान थे - पंडितजी ।
पंडित जी को किस - किस नें नहीं चूसा ;
बेटी , बेटा , पत्नी , पास - पड़ोस वाले
और जब हमलोग हॉस्टल
में इक्कठे रहते थे तब भी वहाँ जिसको मौक़ा मिला , उसनें पंडितजी को ऐठ लिया
लेकीन पंडितजी
सदैव खुश रहा करते थे ॥
आज पंडितजी तो गए , लोग जसम मना रहे हैं
और कुछ समय बाद सबलोग अपनें - अपनें घर को चले जायेंगे और ......
कल कौन जानता है .....
किसका ....
नया दिन हो ....
किसका ----
आखिरी दिन हो .....
जब हो तो ......
उस खुदा को भी अपना ही समझो .....
जो .....
सब का , सभी घटनाओं का ....
अकेले मालिक है ॥

=== ॐ =====

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