Sunday, January 2, 2011

गीता ध्यान




गीता ध्यान भाग - 01

आज से हम ॐ शांति ॐ में गीता - ध्यान श्रृंखला प्रारम्भ कर रहे हैं ,
जो लोग ध्यान को अपनाना चाहते हैं ....
ध्यान को अपना मार्ग बनाना चाहते हैं ....
जो ध्यान से समाधी तक की यात्रा करना चाहते हैं .....
वे ....
सादर आमंत्रित हैं ॥

गीता अध्याय - 06

गीता कहता है ----

ध्यान निर्वाण का द्वार है ॥
किसी - किसी को ध्यान के माध्यम से ....
प्रभु की आहट उसके ह्रदय में मिलती है ॥
ध्यान में डूबे योगी का मन ऐसे शांत होता है .....
जैसे वायु रहित स्थान में रखे गए दीपक की ज्योति अचलायमान होती है ॥
शांत मन दर्पण पर जो ....
प्रतिबिंबित होता है ....
वह होता है ---
परम श्री कृष्ण ॥
जिसका मन प्रभु का निवास है , वह गुनातीत योगी है ॥

मन प्रभु और मनुष्य के मध्य एक ऐसा माध्यम है ....
जो जब विकार - ऊर्जा से भरा होता है तब .....
नरक की ओर रुख कर देता है , और ....
जब इसमें निर्विकार ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है तब ....
यह मुक्ति का माध्यम होता है ॥

ध्यान ---
कब , कहाँ , कैसे करना चाहिए ? .....
इन प्रश्नों के सम्बन्ध में हम देखते हैं ....
अगले अंक में ॥

==== हरी ॐ =====

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