Tuesday, January 11, 2011

गीता ध्यान

भाग - 04


यदि आप ध्यान को अपनाना चाहते हैं तो निम्न बातों को भी देख लें -----

** कुछ दिन ध्यान के लिए आप अपनें घर को ध्यान स्थान के रूप में प्रयोग करें ॥
** ध्यान का प्रारम्भ कहीं नयी जगह पर करना मैं उचित नहीं समझता ॥
** आगे चल कर आप को स्वतः मह्शूश होगा की ध्यान का प्रारम्भ किसी अनजानें स्थान से नहीं
करना चाहिए - क्यों ?
** आप अपनें घर में कोई एक जगह चुनें जो .....
# लोगों के आवागन से कुछ हट कर हो .....
# जहां सूर्य की किरणें आती हों .......
# जहां वायु का आवागमन अच्छा हो ....
ध्यान करते समय अधिकाँश लोगों को नीद आनें लगती है ,
यदि आप लेट कर ध्यान कर रहे हों तो .....
आप का सीर उत्तर दिशा में होना चाहिए और पैर दक्षिण दिशा में , कभी भी
पूर्व - पश्चिम दिशा में लेट कर ध्यान में न उतरें ॥

पहले बताया गया है की ....
ध्यान में आँखें तीन चौथाई खुली होनी चाहिए , इसके दो कारण हैं -----
[क] जब आँखें पुरी बंद होती हैं तब मन में विचार तेज गति से उठते हैं ।
[ख] विचार शून्यता नीद को आमंत्रित करती है जबकि ध्यान में सो जाना ध्यान को खंडित करता है ।
आप को आप का ध्यान निर्वाण तक पहुंचाए ,
और आप .....
प्रभु श्री कृष्ण की ऊर्जा से परिपूर्ण हों ,
मैं तो एक छोटा आदमी हूँ , यही कामना कर सकता हूँ ॥

==== ॐ =====

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