Wednesday, November 26, 2014
Geograthy of seven continents based on Bhagawat
Thursday, November 13, 2014
सम्राट कुरु और उनका क्षेत्र कुरुक्षेत्र
कौन थे राजा कुरु ?
विश्वामित्र और परशुराम में क्या सम्बन्ध था ?
Wednesday, November 12, 2014
बुद्धत्व क्या है
कुरु और कुरुक्षेत्र भाग - 1
Tuesday, November 11, 2014
भागवत से - 29
Monday, November 10, 2014
भागवत से - 28 [ परीक्षित का प्रश्न - 1 ]
Friday, November 7, 2014
भागवत से -27
<> भागवत से एक कथा <>
भागवत सन्दर्भ : 7.15 + 11.21
1- भागवत : 7.15 > " नारद - युधिष्ठिर वार्ता : नारद कह रहे हैं ," वैदिक कर्म दो प्रकार के होते हैं - प्रवित्ति परक और निबृत्ति परक ।"
2- भागवत :11.21>" कृष्ण - उद्धव वार्ता : कृष्ण कहरहे हैं ,":वेदों में तीन कांड हैं - कर्म , उपासना और ज्ञान । वेदों के तीन काण्ड अपनें - अपनें ढंगसे ब्रह्म -आत्मा के एकत्व के रहस्य को स्पष्ट करते हैं । "
# ऊपर बतायी गयी भागवत की दो बातों को समझाना ही कर्मयोग और ज्ञान योग के रहस्य से पर्दा उठाना है ,तो आइये ! चलते हैं इस रहस्य -यात्रा में दो -चार कदम ।
# प्रबृत्ति और निबृत्ति परक -दो प्रकार के कर्म हैं ; प्रबृत्ति परक भोग से जोड़कर रखता है और निबृत्ति परक कर्म वह कर्म हैं जनके होनें के पीछे भोग - बंधन तत्त्वों का प्रभाव नहीं रहता ।
# भोग - बंधन तत्त्व क्या हैं ?
* प्रकृति की उर्जा तीन गुणों की उर्जा है और तीन गुण हैं - सात्विक ,राजस और तामस। इन तीन गुणों की बृत्तियाँ भोग उर्जका निर्मान करती हैं । गुण तत्त्वों के सम्मोहन में जो कर्म होता है उसेभोग कर्म या प्रबृत्ति परक कर्म कहते हैं और जिन कर्मों के होनें में गुणों की ऊर्जा नहीं होती ,उन कर्मों को निबृत्ति परक कर्म कहते हैं । निबृत्ति अर्थात प्रभु केन्द्रित गुणातीत और प्रबृत्ति परक अर्थात पूर्ण तूप से भोग केन्द्रित ।
* भोग में भोग - तत्त्वों के प्रति होश बनाना , कर्म योग -साधना है । भोग कर्म जब बिना आसक्ति होते हैं तब उस कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मीलती है । नैष्कर्म्य की स्थिति ज्ञान - योगका द्वार है ।
* भोग में आसक्ति ,कामना ,क्रोध , लोभ , मोह ,भय आलस्य और अहंकार को समझना ही कर्म योग की साधना है । भोग कर्म जब योग बन जाता है तब ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
* क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ही ज्ञान है ।
* ज्ञान विज्ञान में पहुँचाता है ।
* जिस सोच से सबको प्रभु के फैलाव रूप में समझा जाता है, उसे विज्ञान कहते हैं ।
~~ ॐ ~~