Thursday, November 13, 2014

सम्राट कुरु और उनका क्षेत्र कुरुक्षेत्र

" स तां वीक्ष्य कुरुक्षेत्रे सरस्वत्यां च तत्सखी : । 
पञ्च प्रहृष्ट वदना : प्राह सूक्तं पुरुरवा ।। " 
 ** भावार्थ ** 
" एक दिन सम्राट पुरुरवा कुरुक्षेत्र में सरस्वती नदी - तट पर पांच सखियों के संग विहार कर रही इंद्र के दरबार की अप्सरा उर्बशी से मिले । " 
# अब इस श्लोक को समझिये :---- 
** ब्रह्मा पुत्र अत्रि ,अत्रि पुत्र चन्द्रमा ,चन्द्रमा पुत्र बुध और बुध के पुत्र थे ,पुरुरवा ।
 ** पुरुरवा से इस कल्प का त्रेतायुग प्रारम्भ हुआ था । 
 ** पुरुरवा के कुल में पुरुरवा से आगे 28 वे बंशज थे कुरु । 
<> अब आप भगवत के श्लोक : 9.14.33 को एक बार पुनः देखें और इसे समझनें की कोशिश करें :--- 
1- श्लोक में कुरुक्षेत्र शब्द आया है । 
2- सम्राट कुरु अभीं पैदा भी नहीं हुए हैं पर कुरुक्षेत्र है जबकि सम्राट कुरु कुरुक्षेत्र के स्वामी माने जाते हैं । 
 3- क्या कुरुक्षेत्र सम्राट कुरु से पहले का नाम है ? 
 4- या फिर वर्त्तमान में जो भागवत उपलब्ध है ,उसकी रचना बाद में की गयी है और रचनाकार कुरुक्षेत्र नाम का प्रयोग किया है । 
## कुरुक्षेत्र नाम एक बस्ती को दे कर लोगों नें इतिहास के साथ बेइंसाफी की है । हरियाणा राज्य जब बनाया गया तब इस राज्य का नाम कुरुक्षेत्र रखना चाहिए था और थानेश्वर नाम जो ऐतिहासिक नाम है ,वह तो उस समय भी था जब उस जगह का नाम कुरुक्षेत्र रखा जा रहा था । 
 ## आज थानेश्वर कुरुक्षेत्र नाम के नीचे दब गया और अपना अस्तित्व सिकोड़ ली है और कुरुक्षेत्र जो एक विशाल क्षेत्र था ,जहां से सरस्वती एवं इक्षुमती नदियाँ बहती थी ,वह सिकुड़ कर एक बस्ती में बदल गया । 
~~~ ॐ ~~~

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