# भागवत : 2.4.5-10
प्रश्न - 2 > प्रभु अपनीं माया से सृष्टि रचना कैसे करते हैं ?
[प्रश्न - 15 भी इसी तरह है ; भागवत : 6.4.1-2 में परिक्षित पूछते हैं ," परमात्मा अपनीं किस शक्तिसे सृष्टि विस्तार करते हैं ?]
* प्रश्न - 2 का उत्तर :---
> भागवत : 2.4.11-25+2.5+2.6+2.7 , कुल श्लोक = 154 ।
* यहाँ शुकदेव जी वह सृष्टि रचना बता रहे हैं जिसे ब्रह्मा नारद को बताये थे ।
1- मायासे कालके प्रभाव में महतत्त्व उत्पन्न हुआ।
2- महतत्त्व से कालके प्रभाव में तीन अहंकार उपजे ।
2.1: सात्विक अहंकार और काल से मन और इन्द्रियों के अधिष्ठाता 10 देवता उपजे ।
2.2 > राजस अहंकार और काल से 10 इन्द्रियाँ ,बुद्धि और प्राण उपजे ।
2.3 > तामस अहंकार और काल से :---
# आकाश उपजा , आकाश का तन्मात्र है , शब्द , जिससे दृश्य -द्रष्टाका बोध होता है।
# आकाश से वायु ,वायुका तन्मात्र है स्पर्श।
# वायु से तेज ,तेजका तन्मात्र है रूप ।
# तेज से जल ,जलका तन्मात्र है स्वाद ।
# जल से पृथ्वी , पृथ्वीका तन्मात्र है गंध ।
<> एक बात स्मृति में रखें <>
● ब्रह्मा -सृष्टि ज्ञान में महाभूत , आकाश से प्राकृत सृष्टि प्रारम्भ होती है ।प्राकृत सृष्टि अर्थात मूल तत्त्वों की रचना जिन्हें सर्ग कहते हैं ।सर्गों से ब्रह्मा की साकार सृष्टियाँ होती हैं।
प्राकृत सृष्टि महा कल्प के प्रारम्भ में होती है और वैकृत सृष्टि पुनः -पुनः हर कल्प में होती रहती है
● महाभूतों से उनके तन्मात्र उपजते हैं ।
** ऊपर के सभीं तत्त्वों से एक विराट अंडा बना जो विराट पुरुषका निवास था ।
** विराट पुरुष अर्थात निराकार प्रभुका पहला साकार स्वरुप।
# परीक्षितका तीसरा प्रश्न अगले अंक में #
~~ ॐ ~~
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