<> ऋषभ देव को समझनें के किये कुछ निम्न सन्दर्भों को भी समझना होगा ।
## भागवत में तीन प्रमुख बंश बताये गए हैं जो इस प्रकार हैं ।
1- ब्रह्मा पुत्र मरीचि और मरीचि पुत्र कश्यपका बंश।
2- ब्रह्मा पुत्र अत्रि और अत्रि पुत्र चन्द्रमा का बंश ।
3- ब्रह्मा पुत्र स्वायम्भुव मनु का बंश जो इस कल्पके पहले मनु भी थे ।
## ब्रह्मा के 10 पुत्रों के नाम इस प्रकार से हैं ।
* मरीचि * अत्रि * अंगीरा * पुलस्त्य * पुलह
* क्रतु * भृगु * वसिष्ठ * दक्ष * नारद ।।
## एक कल्प में 14 मनु होते हैं प्रत्येक मनु 71.6/14 चतुर्युगीय का समय भोगता है ।एक चतुर्युगीय समय = 1000 ( चरों युगों का समय ) ।
°° एक चतुर्तुगीय का समय = 4320000 साल ।
°° 14 मनुओं का समय = 4.2 billion years.
°° सत युग = 1,728,000 साल
°° त्रेता युग = 1,296,000 साल
°° द्वापरयुग = 0,864,000 साल
°° कलियुग = 0,432,000 साल
** स्वायम्भुव मनु इस कल्प के पहले मनु थे और द्वापर में महाभारत युद्ध के समय श्राद्धदेव मनु सातवें मनु थे जो ब्रह्मा पुत्र मरीचि ,मरीचि पुत्र कश्यप ,कश्यप पुत्र विवश्वान् ( सूर्य ) और सूर्य पुत्र श्राद्धदेव मनु थे । श्राद्धदेव से सूर्य बंश और चन्द्र बंश दोनों चले । यहाँ सोचिये कि पहले चार मनुओं के समय में चन्द्र बंश और सूर्य बंश क्या नहीं थे ? अब आगे :--
* श्राद्धदेव मनुका पुत्र हुआ सुद्युम्न जो कभीं स्त्री तो कभीं पुरुष होता था । स्त्री सुद्युम्न और चन्द्रमा पुत्र बुधसे क्षत्रियों का चन्द्र बंश चला और जब सुद्युम्न अपनें जीवन से ऊब गए तब बन में तप करनें हेतु चले गए ।इसके बाद बंश को आगे चलानें हेतु श्राद्धदेव मनु यमुना तट पर 100 सालका तप करके 10 पुत्रोंको प्राप्त किया जिनमें बड़े थे इक्ष्वाकु । इक्ष्वाकु से सूर्य बश की नीव पड़ी ।
** स्वायम्भुव मनु ( पहले मनु ) के पुत्र थे प्रियब्रत । प्रियब्रतके पुत्र हुए आग्नीघ्र तथा आग्नीघ्रके पुत्र हुए नाभि और ऋषभदेव नाभिके पुत्र थे ।।
<> ऋषभ देव <>
<> भागवत के रिषभ देव जैन परम्परा के प्रथम तीर्थंकर थे जिनका सन्दर्भ ऋग्वेद में भी मिलता
है ।दिगंबर शब्द ऋषभ देव जी के जीवन शैली से निकला है ।
** जैन शास्त्र कहते हैं की रिषभ देव कैलाश पर परम निर्वाण प्राप्त की लेकिन भागवत में इस सम्वन्ध में निम्न बातें दी गयी हैं ।
ऋषभ जी को 100 पुत्र हुए जिनमें भरत बड़े थे । ऋषभ भरत को राज्य देकर दिगंबर अवधूत रूपमें ब्रह्मावर्त से बाहर निकल गए और अजगर की बृति को अपना ली । अजगर जैसे पृथ्वी पर लेट कर यात्रा करते हुए कुटकाचल के जंगल में लगी आग में वे अपनें शारीर को त्याग दिया । आज का कर्नाटक
कुटकाचल है ।
** ऋषभ जी का ब्याह इंद्र कन्या जयंती से हुआ था।
ऋषभ जी के पिता नाभि और माँ ( विश्वकर्मा पुत्री ) मेरु देवी ऋषभ जी को राज्य देकर बदरिका बन तप हेतु चले गए थे । ऋषभ जी को हिन्दू लोग 8वें अवातात रूप में देखते हैं ।भरत एक करोड़ साल तक राज्य किये थे ।
~~ हरे कृष्ण ~~
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