Tuesday, June 3, 2014

भागवत से - 12

<> भागवतमें याज्ञवल्क्य ऋषि <>
 ** भागवत सन्दर्भ ** भागवत में याज्ञवल्क्य ऋषिके सम्बन्ध में निम्न स्कंधों में कुछ बाते कही गयी हैं जिनको आप यहाँ देख सकते हैं । >> 9.1+9.12+ 9.13+ 9.22 +10.2 10.84+11.1+12.6 << 
^^ भागवत 9.12.1- 9.12.4 +10.2 > श्री रामके बंशमें 14वें बंशज हुए हिरण्यनाभ जिनकी शिष्यता प्राप्त करके कोशल देशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि अध्यात्म - योगकी शिक्षा ग्रहण की थी । हिरण्यनाभ योगाचार्य थे और जैमिनी के शिष्य थे। जैमिनी को वेदव्यास द्वारा सामवेद की शिक्षा मिली थी ।हिरण्यनाभके अगले 6वें बंशज हुए मरू जो सिद्ध थे और आज भी सिद्धों की बस्ती कलाप गाँव में अदृश्य रूप से रह रहे हैं जो सूर्य बंश समाप्त हो जानें पर पुनः इस बंश की नीव रखेंगे । 
^^ भागवत : 9.1+ 9.13 > राजा निमि मिथिला नरपति के बंशजो पर याज्ञवल्क्य जैसे बड़े - बड़े योगेश्वरों की कृपा बनी थी ।मिथिलाके विदेह परम्पता में माँ सीताजीके पिता राजा जनक 21वें जनक हुए और भागवत में कुल 51 जनकों की बात कही गयी है ।ब्रह्मा के पुत्र थे ,मरीचि ऋषि और मरीचिके पुत्र हुए कश्यप ऋषि । कश्यपके पुत्र थे विवश्वान् ( सूर्य ) जिनके पुत्र हुए इस कल्प के सातवें मनु श्राद्धदेव । श्राद्धदेव मनुके पुत्र सुद्युम्न जब बन में तप करनें हेतु चले गए तब यमुना तट पर श्राद्धदेव 100 वर्ष तक तप करके 10 पुत्रों को प्राप्त किया । श्राद्धदेव के इन 10 पुत्रों में बिकुक्षि,निमि और दण्डक तीन प्रमुख थे । बिकुक्षि से श्री राम का बंश बना और निमि से मिथिला नरेश जनक -विदेह राजाओं की परंपरा चली इस प्रकार श्री राम और माँ सीता दोनों की जड़ एक है । 
^^ भागवत : 9.22 > परीक्षित पुत्र जनमेजय थे जिनका पुत्र शतानीक होंगे (भागवत रचना तक शतानिक पैदा नहीं हुए थे ) जो याज्ञवल्क्य ऋषि से तीन वेदों एवं कर्मकांड की शिक्षा लेंगे ।शतानिकके बाद 4थे बंशज होंगे नेमिचक्र जिनके समय गंगा हस्तिनापुर को बहा ले जायेंगी और नेमिचक्र यमुना तट पर प्रयाग के पास कौशाम्बी में जा बसेंगे । यह कौशाम्बी वही है जहां बुद्ध कई बार आये थे । यह कौशाम्बी क़स्बा बुद्ध के समय ब्यापारियों का मुख्य आकर्षण हुआ करता था । 
^^ भागवत : 10.84 > महाभारत युद्ध पूर्व कुरुक्षेत्र समन्तप पंचक तीर्थ में सर्वग्रास सूर्य ग्रहण लगा हुआ था । उस समय कुरुक्षेत्र में सभीं जनपदों से राजा -सम्राट आये हुए थे । यह ऐसा अवसर था जब यशोदा -नन्द एवं प्रभु कृष्ण की बचपन की गोपियाँ ,ग्वाल -बाल भी कुरुक्षेत्र कृष्ण से मिलनें आये हुए थे । इस पुनीत पावन पर्व पर बसुदेव जी एक यज्ञ का आयोजन किये थे जिसमें भाग लेने 29 ऋषि आये थे जिनमें एक थे याज्ञवल्क्य । (भागवत : 11.1) जब यदु कुलका अंत होना था ,प्रभु अपनें 125 साल का समय गुजार कर अपनें स्वधाम जानें ही वाले थे तब द्वारका के पिंडारक क्षेत्र में जो 11 ऋषि रुके हुए थे उनमें याज्ञवल्क्य न थे ।ये ऋषि कृष्ण से गोपनीय चर्चा करनें हेतु द्वारका में पधारे थे और इस अवसर पर ब्रह्मा प्रभु से स्वधाम वापिस जानें का निवेदन किया था ।ऋषियों और प्रभु के मध्य ठीक यदु कुल के अंत होने से पूर्व हुयी यह चर्चा अति गोपनीय थी ।
 ^^ भागवत : 12.6.48-53 > वेदव्यास जी एक वेदको चार भागों में विभक्त किया । ऋग्वेदका ज्ञान पैल ऋषिको दिया । यजुर्वेद की शिक्षा वैशम्पायन ऋषि को दिया , सामवेद का ज्ञान जैमिनी को दिया और जैमिनी के पुत्र सुमंत मुनि को अथर्वेद का ज्ञान दिया ।पेल ऋषि के शिष्य बाष्कल याज्ञवाल्क्य को ऋग्वेद का ज्ञान दिया था और वैशम्पायन से यजुर्वेद का ज्ञान भी याज्ञवल्क्य को मिला था ।याज्ञवल्क्य अपनें गुरु वैशंपायन से खुश न थे अतः उनको त्याग दिया और उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान की उलटी कर दिया। कुछ अन्य विद्वानों ने इस उलटी को चाट लिया और उनके माध्यम से यजुर्वेद की एक नयी शाखा तैत्तिरीय यजुर्वेद बना । याज्ञवल्क्य सूर्य की उपासना की और अनेक वैज्ञानिक बातें बताई ।याज्ञवल्क्य की सूर्य आराधना से सूर्य प्रसन्न हो गए और उनको यजुर्वेद का गहरा राज बताया और याज्ञवल्क्य यजुर्वेद की 15 शाखाओं की रचना की । 
** याज्ञवल्क्य के सम्बन्ध में भागवत प्रसंग यहाँ समाप्त
 होता है ** 
~~ॐ ~~

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