Sunday, May 18, 2014

भागवत से - 10

1- भागवत : 11.3 > दुःख निबृत्ति और अहंकार की तृप्ति केलिए हम कर्म करते हैं पर होता क्या है ? दुःख और। बढ़ता जाता है और अहंकार और सघन होता जाता है ।
2- भागवत : 11.21 > वेद कर्म ,उपासना और ज्ञान माध्यम से ब्रह्म -आत्मा की एकता की अनुभूति कराते हैं ।
3- भागवत : 11.21.> कामना दुःख का बीज है । 4- भागवत :11.21 > निर्वाण के तीन मार्ग हैं -कर्म योग , भक्ति योग और ज्ञान योग ।
5- भागवत : 11.21 > वेदों में तीन काण्ड हैं जो अपनें - अपनें ढंग से ब्रह्म -आत्मा की एकता को स्पष्ट करते हैं ,ये काण्ड हैं - कर्म , उपासना और ज्ञान।
6- भागवत : 11.25 > गुण का प्रभाव स्वभावका निर्माण करता है ,स्वभावतः लोग अलग -अलग प्रकार के होते हैं ।
7- भागवत : 11.25 > मनुष्य शरीर दुर्लभ है जिससे तत्त्व ज्ञान एवं विज्ञान की प्राप्ति संभव है । 8- भागवत : 11.25 > इन्द्रियों की दौड़ से परे मन यात्रा नहीं करता ।
9- भागवत : 11.28 > परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप में जो है वह आत्मा ही है ।
10- भागवत : 3.26 > प्रकृति के कार्य : 10 इन्द्रियाँ , 5 भूत , 5 तन्मात्र , मन ,बुद्धि ,अहंकार और चित्त ।
~~~ ॐ ~~~

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