Tuesday, May 6, 2014

भागवत से - 7

1- भागवत : 1.2 > धर्म वह जो प्रभु से जोड़ कर रखे , जिसका सम्बन्ध कामना से न हो । धर्मसे भक्ति ,भक्ति से अनन्य प्रेम , अनन्य प्रेम से वैराग्य , वैराग्य से ज्ञान तथा ज्ञान से प्रभु को तत्त्व को समझनें की उर्जा मिलती है ।
2- भागवत : 11.19 > 28 तत्त्वों ( 11 इन्द्रियाँ , 5 महाभूत ,5 तन्मात्र , 3 गुण ,महतत्त्व ,अहंकार , प्रकृति ,पुरुषका बोध ज्ञान है ।
3- भागवत : 2.1 > भोगी का दिन धन संग्रह में और रात स्त्री प्रसंग में कटती है ।
4- भागवत : 2.1 > आसन नियंत्रण , श्वास नियंत्रण , इन्द्रिय नियंत्रण , आसक्ति का न होना ,क्रोध रहित रहना और मनका प्रभु पर केन्द्रित रहना स्थिर प्रज्ञताके लक्षण हैं ।
5- भागवत : 2.1 > 5 महाभूत , महतत्त्व और प्रकृति इन 7 आवरणों से घिरे ब्रह्मांड शरीर में विराट पुरुष है ।
6- भागवत : 4.8 > मोह असंतोषका बीज है ।
7- भागवत : 4.8 > रेचक , कुम्भज और पूरक से प्राण , इन्द्रियाँ और मन को निर्मल रखा जाता है ।
8- भागवत : 2.2 > अंत समय से पूर्व मन को देश -काल के सम्मोहन से दूर रखनें का अभ्यास होना चाहिए ।
9- भागवत : 2.2 > अनन्य प्रेम परम पदका द्वार है।
10- भागवत : 2.4+3.5 > शब्द से द्रष्टा -दृश्य का बोध होता है ।
11- भागवत : 2.9 > बिना माया दृश्य पदार्थों से आत्माका सम्बन्ध होना संभव नहीं ।
12- भागवत : 2.4 +3.5 > द्रष्टा -दृश्यका अनुसंधान करता माया है ।
13-भागवत : 3.27 > प्रकृति -पुरुषको अलग करना संभव नहीं ।
14- भागवत : 3.28 > प्राण वायु पर जिसका नियंत्रण है वह शुद्ध मन वाला होता है ।
15- भागवत : 3.29 > गुण परिवर्तन मनुष्यके अन्दर भाव परिवर्तनका कारण है ।
~~ ॐ ~~

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