* भागवत खंड -1 , अध्याय - 1*
<> शौनकजी सूतजी से नैमिष आरण्य क्षेत्रमें यह प्रश्न पूछा :--
> वह जिसके अन्दर भक्ति ,ज्ञान और वैराज्ञ की ऊर्जा प्रवाहित हो रही हो ,उसकी बुद्धि कैसी होती होगी ?
* उस प्रश्न का भागवत में कोई उत्तर नहीं है लेकिन गीता में है ।
* प्रभु कहते हैं :---
अभ्यास योग में अपरा भक्ति परा भक्तिका द्वार खोलती है , पराभक्तिमें स्थित ज्ञानी होता है और ज्ञान वैराज्ञका संगीत है जो ब्रह्मवित् बनाता है । ब्रह्मवित् स्थिर प्रज्ञ योगी होता है जिसके लिए प्रभु कृष्ण कहते हैं :---
* या निशा सर्व भूतानां
तस्यां जागर्ति संयमी *
* यस्यां जाग्रति भूतानि
सा निशा पश्यतो मुने: *
~~~ हरे कृष्ण ~~~
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