Wednesday, April 30, 2014

भागवत से - 5

1- भागवत : 4.22 > धन एवं बिषय का चिंतन पुरुषार्थ का नाशक है ,यह ज्ञान - विज्ञान से दूर रखता है ।
2 - भागवत : 2.1 > एक घडी ज्ञान भरा जीवन भोग भरे 200 साल के जीवन से अधिज प्रीतिकर होता है ।
3- भागवत : 3.36 > साधन से भक्ति ,भक्ति में वैराग्य और वैराग्य से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
4- भागवत : 2.1 > वैराग्य अर्थात गुण तत्त्वों के सम्मोहन से परे का जीवन ।
5- भागवत : 6.5 > बिना भोग अनुभव वैराग्य में पहुँचना कठिन है ।
6- भागवत : 11.19 > ज्ञान : प्रकृति ,पुरुष , अहंकार , महतत्त्व , 11 इन्द्रियाँ ,5 तन्मात्र , 5 महाभूत आदि को समझाना ज्ञान है और इन सबके होनें का कारण ब्रह्म है की समझ विज्ञान है ।
7- गीता : 13.2 : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध ज्ञान है । 8- गीता : 4.38 > कर्म -योग से ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
9- गीता : 4.10 : ज्ञान वह जो प्रभु में बसेरा
बनाए ।
10- गीता : 7.19 > कई जन्मों की तपस्या का फल है ज्ञान प्राप्ति ।
11- गीता : 7.3 > हजारों लोग ध्यान करते हैं ,उनमें एकाध सिद्धि प्राप्ति करते हैं और सिद्धि प्राप्त लोगों में कोई एक तत्त्व ग्यानी होता है ।
12- गीता - 7 16 > चार प्रकार के लोग हैं : # आर्त जो संकट निवारण हेतु प्रभु को याद करते हैं # जिज्ञासु जो प्रभु को यथार्थ रूप में समझाना चाहते हैं # अर्थार्थी जो लोग भोग प्राप्ति हेतु प्रभु को याद करते हैं # ज्ञानी वह जो बिना कारण प्रभु में बसे रहना चाहते हैं ।
13- गीता : 5.16 > ज्ञान से अज्ञान का अंत होता है और ज्ञान ज्योति ही परम प्रकाश है ।
14- गीता : 5.17 - 5.18 > तन मन एवं बुद्धि से निर्विकार समभाव ब्यक्ति ग्यानी -पंडित होता है । 15- गीता : 6.8 > नियंत्रित इन्द्रियों वाला ज्ञान -विज्ञान से परिपूर्ण होता है ।
~~~ ॐ ~~~

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