Thursday, April 24, 2014

भागवत से - 2

<> भागवत के कुछ ध्यान सूत्र - 2 
1- भागवत : 5.6 > जैसे चालाक ब्याध पकडे गए हिरन पर विश्वास नहीं करता वैसे योगी अपनें मन पर विश्वास नहीं करता । 2- भागवत : 5.11 > इन्द्रियों का गुलाम मृत्युकी छाया में जीता है ।
 3- भागवत : 2.1 > मनका पीछा करते रहो और उसे राजस -तामस गुणों की बृत्तियों से दूर रखो।
 4- भागवत : 11.22 > मन स्मृतियों पर भौरे की भांति मडराता रहता है । 
5- भागवत : 3.25 > मन वन्धन - मोक्ष का कारण है। 
6- भागवत : 10.1 > मन विचारों का पुंज है । 
7- भागवत : 11.22 > कर्म संस्कारों का पुंज ,मन है ।
 8- भागवत : 11.13 > मन संसारका बिलास है।
 9- भागवत : 11.28> जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति मन की अवस्थाएं हैं और गुणातीत स्थिति तुरीय कहलाती है । 
10- भागवत : 11.26 > इन्द्रिय -बिषय संयोग मन में विकार लाते हैं ।
 ~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

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