1- भागवत : 5.6 > जैसे चालाक ब्याध पकडे गए हिरन पर विश्वास नहीं करता वैसे योगी अपनें मन पर विश्वास नहीं करता ।
2- भागवत : 5.11 > इन्द्रियों का गुलाम मृत्युकी छाया में जीता है ।
3- भागवत : 2.1 > मनका पीछा करते रहो और उसे राजस -तामस गुणों की बृत्तियों से दूर रखो।
4- भागवत : 11.22 > मन स्मृतियों पर भौरे की भांति मडराता रहता है ।
5- भागवत : 3.25 > मन वन्धन - मोक्ष का कारण है।
6- भागवत : 10.1 > मन विचारों का पुंज है ।
7- भागवत : 11.22 > कर्म संस्कारों का पुंज ,मन है ।
8- भागवत : 11.13 > मन संसारका बिलास है।
9- भागवत : 11.28> जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति मन की अवस्थाएं हैं और गुणातीत स्थिति तुरीय कहलाती है ।
10- भागवत : 11.26 > इन्द्रिय -बिषय संयोग मन में विकार लाते हैं ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~
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