Sunday, April 27, 2014

भागवत से - 3

* भागवतके ध्यान सूत्र *
1- भागवत : 5.11 > मन की बृत्तियाँ = 10 इन्द्रियाँ , 5 प्रकार के कर्म ,5 तन्मात्र , शरीर और अहंकार ।हर कर्म इन्द्रियका अपना कर्म है ।
2- भागवत : 3.26 > अन्तः करण की बृत्तियाँ = संकल्प ,निश्चय , चिंता , अभिमान ।
3- भागवत : 1.3 > अन्तः करण क्या है ? मन ,बुद्धि , अहंकार और चित्त को अन्तः करण कहते हैं । 4- गीता - 10.30 > कालः कलयतां अहम् ।
5- गीता - 11.32 > कालः अस्मि लोकक्षयं कृत प्रवृत: ।
6- भागवत : 11.22 > लिंग शरीर क्या है ? 11 इन्द्रियाँ , स्थूल देहका पिंड लिंग शरीर कहलाता है । 7- भागवत - 7.9 > प्रभु काल रूप में माया से लिंग शरीर बनाया ।
8- भागवत : 6.5 > काल ही वह चक्र है जो ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाओं को खीच रहा है ।
9- भगवत : 1.13 > काल प्राण से भी विरोग कर देता है ।
10- भागवत - 3.10 > हर पल बिषयों में चल रहा रुपान्यारण कालका आकार है ।
11- भागवत : 2.1 > काल प्रभु की चाल है ।
12- भागवत : 3.26 > हर पल गुणों में हो रहा परिवर्तन , काल है और परमात्मा ही काल है ।
13- गीता 14.10 > गुण समीकरण : तीन गुणों में एक गुण अन्य दो को दबा कर ऊपर उठता है और गुण परिवर्तन हर पल चल रहा है ।
14- गीता - 14.5 > तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं ।
15- गीता - 14.17 > सात्विक गुण से ज्ञान ,राजस गुण से लोभ और तामस गुण से मोह है । ~~~ ॐ ~~~

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