Tuesday, May 22, 2012

गरुण पुराण अध्याय नौ भाग एक

श्री गरुण जी का नवां प्रश्न …....

हे प्रभु!आप कृपा करके हमें यह बताएं कि मनुष्य को प्राण – त्याग के समय क्या करना चाहिए जिससे उसे सद्गति मिल सके?

प्रभु गरुंजी के इस प्रश्न के सन्दर्भ में जो कहे हैं उन बातों को देखनें से पहले आप निम्न सन्दर्भों को भी देखें -------

[]देखें गीत श्लोक –5.13 , 5.26 , 5.27 , 6.27 , 6.28 , 8.6 , 8.12 , 8.13 , 15.8

[]जैन परम्परा में संथारा ध्यान

[]तिब्बत में बारडो[ Bardo meditation ]

पहले बताया जा चुका है कि ऐसे ब्यक्ति जिनके जीवन का केन्द्र प्रभु रहा होता है उनको शरीर त्याग के समय का आभास हो जाता है और वे अपना आखिरी समय मात्र इस साधना में गुजारते हैं जिससे उनको परम गति प्राप्त हो और वे आवागमन से मुक्त हो कर प्रभु में बिलीन हो सकें / प्रभु श्री गरुण जी के प्रश्न के सन्दर्भ में कह रहे हैं ---------

  • तुलसी के पौधे के पास गाय के गोबर से पुताई करके स्थान तैयार करें यह सोच कर कि उनको आखिरी श्वास यहीं भरना है और वह भी उस श्वास का द्रष्टा बन कर/

  • उस स्थान पर कपडे का छत बनानी चाहिए/

  • कूशे की चटाई पिछानी चाहिए/

  • पास में सोनें का कोई टुकड़ा,गीता एवं गंगा जल होना चाहिए/

  • कुशा की चटाई बिछा कर उसके ऊपर तिल के बीज को बिखेर देना चाहिए/

  • शालिग्राम की स्थापाना उस जगह पर करें/

प्राण निकलनें के मार्ग हैं - मुख , नेत्र , नासिका , कान [ पवित्र ब्यक्ति के प्राण यहाँ से निकलते हैं ]

योगी ; ऐसा योगी जो तत्त्ववित् होता है उसका प्राण सहस्त्रार अर्थात सिर का वह भाग जहाँ हिंदू लोग शिखा रखते हैं , वहाँ से निकलता है और वे अपनें प्राण के निकलनें का द्रष्टा बनें रहते हैं /

भोगी ब्यक्ति जिनका सारा जीवन मात्र काम वासना एवं नाना प्रकार के भोगों के लिए गुजरा होता है उसका प्राण मल – मूत्र द्वारों से निकालता है और ऐसे लोग मृत्यु से संघर्ष करते हैं/

अगले अंक में कुछ और बातें देखनें को मिलेंगी //

===ओम्=====


1 comment:

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