Thursday, May 10, 2012

गरुण पुराण अध्याय आठ भाग तीन

जब मनुष्य को यह प्रतीत होनें लगे की अब उसका सांसारिक भौतिक जीवन कुछ समय का रह गया है तब उसे भोग की तरफ पीठ करनें का अभ्यास करना चाहिए / भगवान विष्णु इस अभ्यास – योग के सम्बन्ध में कहते हैं -------

[]शालिग्राम का नियमित पूजन करना चाहिए

[]ओम् नमः शिवाय का जाप करते रहना चाहिए

[]ओम् वासुदेवाय नमः का जप करते रहना चहिये

[]भगवान के10अवतारों को अपनें स्मृति में रखना चाहिए

[]विष्णु शहस्त्र नाम का जप करते रहना चाहिए

[]निम्न प्रकार के दान करते रहना चाहिए ….....

तिल,लोहा,सोना,कपास,नमक,सप्त धान्य,भूमि,गौ

सप्त धान्य में चावल , गेहू , जौ , मूंग , उर्द , चना , कंगुनी अन्न आते हैं / लोहा दानके सम्बन्ध में हमें देखना चाहिए कि भारत में Iron Age कब था ? इतिहास की खोज यह बताती है कि भारत में लौह युग लगभग 1800 BCE प्रारम्भ हो गया था / लौह दान से प्राणी यम लोक नहीं जाता , ऎसी बात गरुण पुराण कहता है / श्री विष्णु भगवान आगे कहते हैं , तीन प्रकार के तिल होते हैं जिनका जन्म मेरे पसीनें से हुआ है और इनके दान से असुर , दानव एवं दैत्य तृप्त होते हैं / सफ़ेद , काले एवं पीले दिलों का दान शरीर , मन एवं वाणी में संचित पाप नष्ट होते हैं / सोना दान से पृथ्वी , पाताल एवं स्वर्ग के देवता प्रसन्न होते हैं और धर्म राज के सभा के सदस्य भी प्रसन्न होते हैं / कपास का दान यमदूतों के भय से मुक्त कराता है , नमक दान से यम का भय दूर होता है , सप्त धान्य के दान से यमपुर के पूर्व , पश्चिम एवं उत्तर के द्वारों के अधिष्ठाता खुश होते हैं / जितनी जगह पर सौ गौ रह सकें उतनी जमीन का दान करनें से ब्रह्म हत्या का पाप दूर होता है / वह जो हरी - भरी जमीन दान करताहै वह सीधे इन्द्रलोक जाता है /

गोदान के सम्बन्ध में आप अगले अंक में देखें


===== ओम्========


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