Monday, November 14, 2011

बुद्ध महाबीर


बुद्ध और महाबीर


ऋग्वेद से बुद्ध तक के भारत के दर्शन की दिशा को यदि देखा जाए तो ग्रीक के दर्शन कि दिशा एवं भारत के ऋषियों के दर्शन की दिशा एक ही थी ऐसा कहना गलत न होगा / भारत में सांख्य – योग के माध्यम से ऋषियों नें प्रकृति के विज्ञान को देखना प्रारम्भ किया , प्रकृति की क्रिया की गहराई में अनंत की खोज में जुटे रहेऔरपश्चिम में थेल्सऔर उनसे कुछ पूर्व के दार्शनिकों की वैगानिक बातें वहाँ के बिचारकों की बुद्धि की दिशा कुछ ऎसी बदली कि वहाँ सेविज्ञान का जन्म हुआ / इसापूर्व सभ्यता के प्रारम्भ से बुद्ध तक भारात के ऋषियों की सोच विज्ञान का मार्गबना रही थी लेकिन इसके बाद क्या हुआ कि यह मार्ग खंडित हो गया , भारत गुलाम होनें लगा , यहाँ के दार्शनिक गुलामी को भुलानें के लिए भक्ति भाव का सहारा लेनें लगे और वैज्ञानिक सोच की जड ही कट गयी लेकिन पश्चिम में थेल्स , अनाक्सिमंदर , सुकरात , अरिस्तोतिल आदि की सोच एक दिशा में चलती रही जिसके फल स्वरुप विज्ञान की पकड़ वहाँ गहरी होती चली गयी / बुद्ध क्या कहे ? महाबीर क्या कहे ? और सुकरात क्या कहे ? अरिस्तोतिल क्या कहे ? इन सब के बचनों को एक साथ देखें तो यही लगता हा कि ये बचन कई लोगों के नहीं हैं एक के ही हैंलेकिन यहाँ महाबीर – बुद्ध की जड को काट फेका गया और उनको भगवान का दर्जा तो मिला लेकिन भगवान बना कर उनको मार दिया गया / गरुण पुराणमें लिखा है , भगवान जब स्वर्ग – नर्क की रचना की तब नर्क में कई शादियों तक कोई न था और वहाँ का सम्राट यमराज भगवन के पास पहुंचे और बोले , प्रभु ! मझे आप क्यों वहाँ अकेले छोड़ दिया है , मैं क्या गुनाह किया था , मुझे आप अपनें से दूर क्यों किया और क्यों ऎसी अकेले रहनें की सजा दी है ? प्रभु बोले , तुम चिंता न करो , आगे कलियुग आ रहा है , जब मैं बुद्ध के रूप में पैदा होउंगाऔरमुझे माननें वाले सभीं नर्क जायेंगेऔर तेरा नर्क भर जाएगा / अब आप सोचिये , यह क्या है ? भारत में किसी को आरा नहीं जाता , उसे पूज कर लोग मार देते हैं कुछ ऎसी बारीकी से उसे भी पता नहीं चल पाता / बीस – पच्चीस रुपरों में शिव पुराण , गरुण पुराण , विष्णु पुराण जैसी किताबे बाजार में मिलती हैं , आप उन किताबों को पढ़ें , रोना आता है , ऐसे लोग भी होते हैं जो शात्रों में गंध बरनें का काम करते हैं /




============ओम्============


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