Thursday, November 10, 2011

कंदहार नगर को समझो

कंदहार

आज का अफगानिस्तान का कंदहार द्वापर में एक प्रमुख स्थान तो था ही अशोका तक यह इस विश्व में अपना अलग स्थान रखता रहा है / गंधारी कौरवों की मां गंधार की राजकुमारी थी और सकुनी यहाँ का प्रिंस होता था / दुनियाँ की शायद अति प्राचीन सभ्यता - मेहरगढ़ की सभ्यता जो लगभग 7000 – 5500 BCE की समझी जाती है उसका सीधा सम्बन्ध कंदहार से है / इस सभ्यता की खोजें इस बात के प्रमाण हैं कि यहाँ के लोग दांतों में सुराख़ करके उसमें धातु की कीलें लगते थे , दाँतों को और अधिक खूबशूरत बनानें के लिए और तारकोल [ Bitumen ] का प्रयोग भी यहाँ देखा गया है , यहाँ के लोग तोक्ररियों पर तारकोल लगाया करते थे / गंधहार [ कंदहार ] लगभग 600 BCE से 2CCE तक एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा है / यह क्षेत्र महाजनपदों में एक महत्वपूर्ण महाजनपद रहा है / मौर्यों के शाशन काल में यह राजधानी रहा है और चंद्रगुप्त मौर्या से अशोका तक यह क्षेत्र अपनी चरम सीमा तक फैला हुआ था / कंदहार बाद में कनिष्क राजाओं की राजधानी रही लगभग 2CCE तक इसके बाद कनिष्क पेशावर को इस क्षेत्र की राजधानी बना दिया , उस समय पेशावर का नाम पुरुषपुर हुआ करता था / कंदहार राज्य के दो शहर पुरुषपुर [ पेशावर ] एवं पुष्कलावती इसापूर्व में विश्व में अपना स्थान रखते थे / इस क्षेत्र का सम्बन्ध संस्कृति के मूर्धन्य विद्वान पाणिनी एवं आर्थिक – राजनितिक महान वैज्ञानिक चाणक्य से रहा है / स्वात एवं दीर [ Dir ] नदियों के संगम पर बसा कंदहार प्राचीनता इतिहास का केंद्र रहा है जहां आज तालिबान का प्रभाव है / पुष्कलावती स्वात एवं काबुल नदियों के संगम पर बसा है जहां काबुल नदी की तीन धाराएं स्पष्ट नज़र आती हैं / कंदहार में एक रहस्य मयी झील का भी नाम आता है जिसका नाम था धनकोष जहां तिब्बत के काग्यू सम्प्रदाय के आदि गुर श्री पद्मसंभव जी अवतरित हुए थे लेकिन यह झील एक रहस्य ही है /

इतिहास की खीडकी से झांकना उत्तम है

लेकिन

झांकते ही रहना उत्तम नहीं

वहाँ से कुछ ज्ञान बटोरो और उस ज्ञान को आनें वाली पीढ़ी को बाटनें का काम करो

क्या पता इन भूले - बिसरे दिनों की यादों में नयी पीढ़ी को कुछ ऎसी चीज मिले जिसकी

इस मनुष्य सभ्यता को आज बहुत जरूरत है //

कुछ और बातें अगले अंक में


========ओम्========


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