Thursday, December 16, 2010

क्या आप कभी सोचे हैं ?



गंगा और यमुना एक गर्भ से जन्म ले कर एक दुसरे के समानांतर एक दुसरे को झांकती हुयी अपनी - अपनी
यात्रा तब तक करती रहती हैं जबतक उनकी यात्रा के हिसाब से मध्य उम्र नहीं आ जाती ।
गंगा का पानी सफ़ेद और यमुना का गहरा नीले रंग जैसा दिखता है । गंगा और यमुना जहां मिलती हैं उस
जगह को प्रयाग कहते हैं ।
क्या आप कभी प्रयाग संगम पर स्नान किये हैं ? यदि नहीं तो वहाँ जानें
का कभी प्रोग्राम बनाना और जब वहाँ पहुँच जाना तब मेरी एक बात जरूर सोचना ।
संगम से आप कोई एक नाव करना , नाव को बीच धारा से चलानें के लिए मल्लाह से बोलना , अच्छा होगा यदि आप संगम से पहले ही गंगा से अपनी यात्रा करें और वह जगह अपनें आप आजायेगी जहां यमुना आकर गंगा से मिलती हैं , फिर नाव को आप मुख्य धारा से बहनें दे और अपनी नज़र धारा पर रखना । संगम से काफी आगे तक सफ़ेद और नीले रंग की दो धाराएं साफ़ - साफ़ नज़र आती हैं और उसके बाद यमुना अपना अस्तित्व खो कर स्वयं गंगा बन जाती हैं । जहां दोनों धाराओं का यह मिलन होता है या यों कहे की जहां यमुना अपनें को गंगा में पूर्ण रूप से मिला देती है , वहाँ गंगा के किनारे पर एक छोटा सा अति प्राचीन मंदिर है जहां आज से चालीश साल पहले कोई नहीं जाता था ।
क्या है उस मंदिर में जहां यमुना की आत्मा गंगा में बिलीन हो जाती है ? मैं नहीं चाहता आप को बताना लेकीन जब आप एक दिन उस मंदिर के साथ अपनें को जोडनें में सफल हो जायेंगे तो आप को परम सत्य की एक किरण आप के ह्रदय में एक परम ऊर्जा की लहर जरुर पैदा कर देगी और आप
उस स्थिति में उस संगम को देख कर धन्य हो उठेगें जो सही संगम है ॥
प्रभु आप की यात्रा मंगल मय बनाए रखे
ॐ की तरंगें ह्रदय में गूंजती रहे .........
दृष्टि प्रभु पर टिकी रहे .......
तब सम्पूर्ण अपना सा ही दिखता है ......
यहाँ कौन है पराया ?
सब यात्रा पर हैं और सब एक - एक करके लुप्त होते जा रहे हैं , फिर .....
क्या ?
कौन ?
है , अपना और पराया ॥

===== ॐ शांति ॐ ====

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