Tuesday, December 28, 2010

मन - मंदिर



मन - मंदिर का गहरा सम्बन्ध है ----
मकान तो पशु - पक्षी सभी बनाते हैं ----
उत बिलाव को तो एक उत्तम आर्किटेक माना जाता है ....
लेकीन मंदिर मात्र इंसान बनाते हैं , ऐसा क्यों ?
इंसान में सभी जीवों से सर्वोत्तम मन - बुद्धि तंत्र की ब्यवस्था प्रकृति की ओर से किया गया है , अतः इंसान
बहुत से ऐसे काम करता है जैसे मंदिर बनाना आदि ।
क्या आप इनके बारे में कभी सोचते हैं ...........
() अजन्ता - अलोरा की कृतियों के बारे में ----
() एलिफेंटा के मंदिरों के बारे में -----
() खजुराहो के मंदिरों के बारे में -----
() पागान [ मेमार ] की पहाड़ियों को काट कर एक मंदिरों का शहर बनाया गया था ,
अबसे लगभग तेरह सौ साल पहले - उसके बारे में -----
() () यदि आप इन के बारे में कभी गंभीरता से न सोचा हो तो अब सोचना की .....
जो लोग ऐसा किये थे उनके अन्दर कैसी उर्जा प्रवाहित हो रही होगी , क्योंकि ----
जहां इनको बनाया गया है उस स्थान पर कोई देखनें वाला उन दिनों तो आसानी से पहुँच नहीं सकता
रहा होगा , उनके अन्दर कोई अहंकार रहा हो , वे ऐसा करके नाम कमाना चाहते रहे हों , ऐसा भी
नहीं लगता , फिर ऐसे - ऐसे काम करनें वाले कौन लोग रहे होंगे ?

** पहले मंदिर उनके द्वारा बनाए जाते थे जो अपने सघन ध्यान में कुछ अनुभव किये होते थे और
उस निराकार अनुभव को साकार रूप में ढालनें के लिए लोग जो प्रयत्न करते थे ,
उसको मंदिर कहा जाता था ।

जिस जगह पहुंचनं पर ........
# मन रिक्त होता हो
# तन में कुछ - कुछ होनें लगता हो
# जहां से वापस आनें को मन न करता हो
ऐसे स्थान मंदिर होते हैं ॥

आप एक काम करें ======
मन अन्दर मन अन्दर मन अन्दर - एक श्वास में बोलते रहे जैसे गाना गाते हैं ...
और अपनें परिवार के किसी को कहदे की .....
आप जो गा रहे हैं उसे वह रिकार्ड कर ले ....
और तब आप उस रिकार्डिंग को सुनना ....
उसकी धुन जो होगी , वह होगी ....
मदिर मंदिर मंदिर की

==== ॐ =====

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