Tuesday, December 21, 2010

मन से

मन की यात्रा तो ---
तन की यात्रा को आमंत्रित ...
करती है ॥

मन से दो यात्राएं एक साथ तो नहीं लेकीन अलग - अलग की जा सकती हैं ।
एक यात्रा ज्यादा लम्बी तो नहीं होती लेकीन दूसरी यात्रा बहुत लम्बी होते हुए भी छोटी लगाती है ।
एक यात्रा मन से बिषय की है
और
दूसरी यात्रा है मन से अनंत की ॥

मन से बिषय की यात्रा के ही हम फल हैं ;
भोग से भोग में हमारा जन्म हुआ है
और
भोग से भोग में अंत हो जानें वाला है ॥

हमें मनुष्य की योनी मिली है , प्रकृति की कुछ जिम्मेदारियां भी गर्भ से मिली हुयी हैं लेकीन ....
उनके प्रति हम कितनें जागृत हैं , इस बिषय के बारे में हमें गंभीरता से सोचना है ॥
मन से बिषय की यात्रा बेहोशी की यात्रा है ,
यह यात्रा ऎसी है जैसे हिमालय की उंची शिखर से पानी
नीचे की ओर चलता है
और .....
मन से अनंत की यात्रा पथ रहित यात्रा है ;
यह संसार के गुरुत्वा शक्ति के बिपरीत की यात्रा है , जिसमें
पग - पग पर गुणों के अवरोध मिलते हैं
और
यह भी सभव है की ......
यात्रा मात्र एक कदम की ही शेष रहे
और हमारा रुख नीचे की तरह स्वतः हो जाए ॥
गीता कहता है -----
बैराग्य में पहुँच कर भी योगी भोग में उतर आते हैं ॥
आप को कौन सी यात्रा प्रीतिकर हो सकती है ......
एक यात्रा पर आप - हम हैं
और दूसरी का कोई अनुभव अभी तक तो मिला नहीं लेकीन ....
प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं .......

बिषय से बैराग्य -----
बैराग्य से मुझ तक की ....
यात्रा का दूसरा नाम है .....
परम आनंद ॥

प्रभु के प्रसाद रूप में गीता को पकड़ कर रखिये
बाक़ी ....
सब ठीक ही होता रहेगा ॥


==== ॐ शांति ====

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