Sunday, October 5, 2014

भागवत से -23

भागवत से - 23 
*  शन्तनु की पत्नी सत्यवती और पराशर ऋषि से वेदव्यासका जन्म हुआ । वेदव्यास आश्रम शम्याप्रास परम पवित्र आश्रम के पास था जहाँ सरस्वती नदी पश्चिम मुखी थी । आश्रमके पास सुन्दर बेर - बन होता था । शम्याप्रास आश्रम पर हर वक़्त यज्ञ हुआ करते थे ।
 <> यह जगह Haryana में Sirsa और Bhiwani बेल्ट में होना चाहए <> 
* एक समय सुबह -सुबह सरस्वती नदी में स्नान करके वेदव्यास जी कुछ असंतुष्ट मुद्रा में अकेले बैठे थे । उस घड़ी वहाँ नारद का आना हुआ । नारद वेदव्यास से उनकी असंतुष्ट होनें का कारण जानना चाहा ।
* वेदव्यास कहते हैं , नारद ! महाभारत की रचना से मैं वेदों के रहस्य को स्पष्ट कर दिया है पर अब भी मुझे कुछ ऐसा लगता है जैसे कुछ बाकी रह गया हो । मैं यहाँ बैठे इसी बात पर सोच रहा हूँ । 
* नारद कहते हैं , मैं समझता हूँ , आप प्रभु के परम यश का गान नहीं हुआ है और जिस शास्त्र या ज्ञान से प्रभु खुश नहीं होते वह शास्त्र या ज्ञान अधूरा होता है । वह ज्ञान जिसमें भक्ति रस की कमी हो ,मोक्ष का द्वार नहीं खोलता । हे व्यास जी ! अब आप सम्पूर्ण जीवों को बंधन मुक्त करनें के लिए समाधि माध्यम से प्रभु की लीलाओं का वर्णन 
करें । 
 * नारद कहते हैं , आप इस बात को समझें , आप प्रभु के कला अवतार हैं । आप अजन्मा हैं फिरभी जगत - कल्याण हेतु आप जन्म लिया है । 
 * नारद कहते हैं , मनुष्य संसार से वैरागी हो कर ही प्रभु से जुड़ सकता है । तीन गुणों वाली माया से सम्मोहित ब्यक्ति की पीठ प्रभु की ओर होती हैऔर आँखें भोग - वासना में गड़ी रहती हैं । प्रभु की लीलाओं में मन केन्द्रित करके मनुष्य माया मुक्त हो सकता है और मया मुक्त ब्यक्ति प्रभु तुल्य होता है अतः आप प्रभु श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करके लोगों के लिए भोग - बंधन मुक्ति का एक सरल मार्ग दिखाएँ । 
* वेद व्यास जी इस बात पर भागवत की रचना की और सबसे पहले अपनें पुत्र शुकदेवजी को सुनाया । उस समय शुकदेव जी की उम्र पांच सल से कम की रही होगी ।* 16 वर्षीय शुकदेव जी परीक्षित को भागवत सुनाया । 
~~~ ॐ ~~~

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