Tuesday, October 14, 2014

भागवतसे - 24 : माया क्या है ?

<> माया क्या है  ?
# बुद्धि स्तर पर माया को समझना संभव तो नहीं लेकिन समझना तो है ही तो आइये चलते हैं उसे समझनें की कोशिश करते हैं जिसका द्रष्टा अनन्य भक्त होता है ।
 # मार्कंडेय ऋषि नारायण से माया देखनें का आग्रह किया था और नारायण उनको माया दिखानें का आश्वासन देकर बदरिकाश्रम चलेगये थे । मार्कडेय ऋषि का आश्रम उस क्षेत्र में हुआ करता था जहां आज मानस सरोवर है । <> गीता - 7.14 <>
 # कृष्ण कहते हैं ," दैवी गुणमयी मेरी माया दुस्तर है पर जो मुझ पर केन्द्रित रहते हैं , वह मायामुक्त होकर संसार से तर जाते हैं । " 
 <> गीता - 7.15 <>
 # माया आश्रित ब्यक्ति आसुरी स्वभाव वाला होता है । 
<> भागवत से <> 
* भागवत स्कन्ध - 11 . 3 * 
> विदेह - जनक राजा निमि और नौ योगिश्वारों के संबाद में तीसरे योगीश्वर अन्तरिक्ष जी माया के सम्बन्ध में जो बातें कहते हैं ,उन्हें हम यहाँ देखते हैं ।
 1- माया अनिर्वचनीय है । उसका निरूपण उसके कार्यों से हो सकता है । माया असीमित प्रभु से प्रभु में वह माध्यम है जिससे प्रभु की रचनाएँ हैं । 
2- पञ्च महाभूतों से निर्मित देह में प्रभु का सभीं के हृदय में बसना माया से संभव होता है । 
2.1 -यहाँ इस सम्वन्ध में गीता - 14.5 को देखना चाहिए जो कहता है ,"देह में जीवात्मा को तीन गुण बाध कर रखते हैं ।
 3- देह में मन आश्रित जीवात्मा को सुख - दुःख के मध्य रहना और संसार में भटकते रहना प्रभु की माया है ।
4- जन्म ,जीवन , मृत्यु का घटित होते रहना माया की ओर इशारा देता है ।
5- प्रलय कालमें ब्यक्तका अब्यक्त की ओर खीचे चले जाना ,प्रभु की माया है । 
6-प्रलय काल में पृथ्वी का जल में बदलना ,जल का अग्नि में बदलना ,माया है । और अग्नि के स्वरुप को अंधकार लेलेता है ,अग्नि वायु में बदल जाती है , आकाश वायु से स्पर्श छीन लेता है , वायु आकाश में लीन हो जाती है , काल आकाश से शब्द छीन लेता है , आकाश तामस अहंकार में बदल जाता है । तामस अहंकार काल में प्रभाव में महतत्त्व में लीन हो आता है , महतत्त्व माया में लीन हो जाता है और माया सनातन है - यह सब माया ही तो है । 
7- भागवत :6.5 . 16
 > माया दोनों तरफ बहनें वाली नदी जैसी है जो सृष्टि - प्रलय के मध्य बहती रहती है । 
8- भागवत : 2.9 
> माया बिना आत्मा का दृश्य पदार्थों से सम्बन्ध संभव नहीं । 
9 - भागवत : 3.5.25 > दृश्य- द्रष्टा का अनुसंधन करता माया है । 
10-भागवत : भक्त माया का द्रष्टा होता है ।
 ~~ ॐ ~~

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